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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र DEEEEEEEEEEERINEEROccaacancOOOOOOOOOOce
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी। पुण्णभद्दे चेइए।
भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी बोले - जंबू! उस काल, उस समय चंपा नामक नगरी थी, जो राजा कोणिक द्वारा शासित थी। चंपा नगरी के उत्तर पूर्वी दिशा भाग में पूर्णभद्र नामक चैत्य था।
तत्थ णं माकंदी णामं सत्थवाहे परिवसइ अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स णं भद्दा णामं भारिया होत्था। तीसे णं भद्दाए अत्तया दुवे सत्थवाहदारया होत्था तंजहा - जिणपालिए य जिणरक्खिए य। तए णं तेसिं मागंदियदारगाणं अण्णया. कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पजित्था
भावार्थ - वहाँ (चंपा नगरी में) माकंदी नामक सार्थवाह निवास करता था। वह धनवैभवशाली यावत् सर्वत्र सम्माननीय था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। उस सार्थवाह के भद्रा की कोख से उत्पन्न जिनपालित और जिनरक्षित नामक दो पुत्र थे। वे माकंदी पुत्र एक दिन जब मिले तो उनमें परस्पर इस तरह वार्तालाप हुआ। दो सार्थवाह पुत्रों द्वारा समुद्री यात्रा
(४) एवं खलु अम्हे लवणसमुदं पोयवहणेणं एक्कारसवारा ओगाढा सव्वत्थ वि य णं लट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि णिययघरं हव्वमागया। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! दुवालसमंपि लवण समुहं पोयवहणेणं ओगाहित्तए - त्तिकटु अण्णमण्णस्स एयमढं पडिसुणेति २ ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी।
शब्दार्थ - अणह-समग्गा - सर्वथा निर्विघ्न। .
भावार्थ - हम लोगों ने जहाज द्वारा लवण समुद्र पर से ग्यारह बार यात्राएं की हैं। सभी यात्राओं में हमने अपने लक्ष्य को साधा-धन की प्राप्ति की, करने योग्य कार्य संपादित किए और फिर सर्वथा निर्विघ्न रूप में अपने घर यथा शीघ्र ही लौट आए। कितना अच्छा हो हम
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