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________________ २८० ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුද पंथकोटिं वा काउं वच्चइ ताहे वि य णं से चिलाए दासचेडे सुबहुपि (हु) कूवियबलं हयमहिय जाव पडिसेहेइ (२) पुणरवि लद्धढे कयकजे अणहसमग्गे सीहगुहं चोरपल्लिं हव्वमागच्छइ। शब्दार्थ - असिलट्ठिग्गाहे - प्रमुख खडग एवं यष्टिधारी, वच्चइ - व्रजति-जाता है, हयमहिय - मार डालता, ध्वस्त कर डालता, अणहसमग्गे - मार्ग में निर्विघ्नतया। ___भावार्थ - दासपुत्र चिलात चोर सेनापति विजय के मुखिया के रूप में खडग और यष्टिका हाथ में लिए आगे चलता। जहाँ भी चोर सेनापति गांवों को उजाड़ने यावत् नगरादि को नष्ट करने, राहगीरों को कूट-पीटकर धन लूटने के कार्य से निकलता, तब वह दासपुत्र चिलात चोरों की खोज करने आए नगर रक्षकों को हताहत कर देता यावत् उन्हें प्रवेश से रोक देता। फिर वह अपना कार्य सिद्ध कर निर्विघ्नतया रास्ता पार कर सिंहगुफा नामक उस चोर पल्ली में शीघ्र ही आ जाता। (१६) तए णं से विजए चोर सेणावई चिलायं तक्करं बहूओ चोरविजाओ य चोरमंते य चोरमायाओ य चोरणिगडीओ य सिक्खावेइ। भावार्थ - चोर सेनापति विजय ने चिलात तस्कर को बहुत से चोर विद्याएं, चोर मंत्र चोरी विषयक मायाचार तथा उसे छिपाने के लिए छल प्रयोग सिखलाए। विजय की मृत्यु : चिलात उत्तराधिकारी (१७) तए णं से विजए चोर सेणावई अण्णया कयाइं कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था। तए णं ताई पंच-चोरसयाई विजयस्स चोरसेणावइस्स महया २ इड्डी सक्कारसमुदएणं णीहरणं करेंति २ त्ता बहूणं लोइयाई मयकिच्चाई करेंति २ त्ता जाव विगयसोया जाया यावि होत्था। शब्दार्थ - णीहरणं - श्मशान भूमि में ले जाना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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