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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र xX भावार्थ तब राजा कनककेतु ने सांयात्रिकों का यह कथन सुनकर उनसे कहा देवानुप्रियो ! तुम मेरे कौटुम्बिक पुरुषों के साथ जाओ और कालिक द्वीप से उन घोड़ों को लाओ । तब व्यापारियों ने 'स्वामी! ऐसा ही करेंगे' कहकर राजाज्ञा को स्वीकार किया। २६० XXX (१४) तणं से कणगऊ कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुभे देवाणुप्पिया! संजुत्तएहिं ( णावावाणियएहिं ) सद्धिं कालियदीवाओ मम आसे आह । तेवि पडिसुणेंति । तए णं ते कोडुंबिय० सगडीसागडं सर्जेति २ त्ता तत्थ णं बहुणं वीणाण य वल्लकीण य भामरीण य कच्छभीण य भमाण य छब्भामरीण य विचित्तवीणाण य अण्णेसिं च बहूणं सोइंदिय पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी सागडं भरेंति । - शब्दार्थ - सोइंदिय पाउग्गाणं - कानों को प्रिय लगने वाले । भावार्थ - राजा कनककेतु ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा- देवानुप्रियो ! तुम इन सांयात्रिक व्यापारियों के साथ कालिक द्वीप जाकर अश्वों को लाओ। उन्होंने राजाज्ञा शिरोधार्य की । उन्होंने गाड़े गाड़ी तैयार किए। उनमें वल्लकी, भ्रामरी, कच्छपी, बंभा, षट्भ्रामरी आदि विभिन्न प्रकार की वीणाएं तथा और बहुत प्रकार के श्रोत्रेन्द्रिय प्रायोग्य – कानों को सुख प्रदान करने वाले द्रव्यों, पदार्थों को गाड़ी-गाड़ों में रखा। (१५) भरित्ता बहूणं किण्हाण य जाव सुक्किलाण य कट्ठकम्माण य ४ गंथिमाण ४ जाव संघाइमाण य अण्णेसिं च बहूणं चक्खिंदिय पाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति २ त्ता बहूणं कोट्ठपुडाण य केयइपुडाण य जाव अण्णेसिं च बहूणं घाणिंदिय पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी सागडं भरेंति २ त्ता बहुस्स खंडस्स य गुलस्स य सक्कराए य मच्छंडियाए य पुप्फुत्तरपउमुत्तर० अण्णेसिं च जिब्भिंदिय पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी सागडं भरेंति २ त्ता अण्णेसिं च बहूणं कोयवया (वा) ण य कंबलाण य पावरणा (वारा) ण य णवतयाण य मलयाण य मसूराण य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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