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आकीर्ण नामक सतरहवां अध्ययन - अकस्मात कालिकद्वीप पहुँचने का संयोग २५७ accccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx दूर से ही उनकी गंध का अनुभव किया। वैसा करते ही वे भीत, त्रस्त एवं अत्यंत उद्विग्न होकर वहाँ से भाग छूटे, अनेक योजन पार कर गए। जहाँ पहुँचे, वहाँ विशाल गोचर भूमि, कोमल मुलायम घास एवं पानी का प्राचुर्य था। वे घोड़े वहाँ सुखपूर्वक विचरण करने लगे। ___ विवेचन - इस सूत्र में जिन अश्वों का वर्णन आया है, वे किस जाति या वंश के थे, यह मूल पाठ से स्पष्ट नहीं होता है। अब तक हुई व्याख्याओं में भी स्पष्टीकरण नहीं हो सका है। आचार्य अभयदेव सूरि ने 'आइण्णेवेढा' आकीर्ण वेष्ट को अन्य स्थान से उद्धृत करते हुए इस संबंध में उल्लेख किया है कि वे घोड़े नीले, काले, हरे, श्वेत, लाल आदि अनेक रंगों की धारियों वाले थे। अंत में उन्होंने यह भी उल्लेख किया है - ___ 'गमनिका मात्र मतदस्य वर्णकस्य, भावार्थस्तु बहुश्रुत बोध्यः' - अर्थात् यहाँ गमनिका - वर्णक का शब्दार्थ मात्र है, भावार्थ तो बहुश्रुत विद्वानों द्वारा गम्य है। - आचार्य अभयदेव सूरि द्वारा किए गए इस उल्लेख से यह व्यक्त होता है कि स्वयं उनको भी गमनिका के अर्थ से पूर्ण संतोष न रहा हो। अन्यथा उसे वे 'बहुश्रुत बोध्य' क्यों कहते? । __जहाँ वे सांयात्रिक वणिक पहुँचे, उस द्वीप में उन्हें वे घोड़े मिले। जो ऐसे थे कि मनुष्यों को देखते ही चौंक उठे, दूर से ही उनकी गंध मात्र से अत्यंत भयभीत, व्याकुल एवं उद्विग्न होते हुए भाग छूटे। इससे यह प्रतीत होता है कि वे जंगलों में रहने वाले घोड़े थे। मनुष्यों के साथ रहने वाले पालतू नहीं। घोड़ों की विविधता का जो उल्लेख हुआ है उसका यथार्थ आशय यह प्रतीत होता है कि उन घोड़ों के शरीर पर बहुरंगी धारियाँ थीं। वे अनेक जातियों के न होकर एक ही जंगली जाति के धारीदार घोड़े थे।
___ अंग्रेजी भाषा में प्रचलित जेब्रा (ZEBRA) शब्द से सूचित अश्व सदृश प्राणी से वे तुलनीय हैं। जेब्रा की भी लगभग ऐसी ही प्रकृति होती है, जैसी प्रस्तुत सूत्र में घोड़ों की प्रकृति का उल्लेख हुआ है।
इसी अध्ययन में आगे के सूत्रों में सांयात्रिक वणिकों की सूचना पर हस्तीशीर्ष नगर के राजा द्वारा उन घोड़ों को प्रयत्न पूर्वक मंगवाने का वर्णन है। उनको लुभाने की बहुविध सामग्री के साथ राजपुरुष वहाँ पहुँचे तो उनमें से कुछ ही उनकी पकड़ में आ पाए। उनको नगर में लाकर राजाज्ञा से प्रशिक्षित करने का विविध कष्ट पूर्ण लम्बा प्रयास किया गया, तब कहीं वे सामान्य घोड़ों की स्थिति में आए। इससे यह ओर भी स्पष्ट होता है कि वे घोड़े जेब्रा जैसी किसी जंगली जाति के थे।
यह प्रसंग अनुसंधायक विद्वानों के लिए अन्वेषण-गवेषण का विषय है।
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