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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පියසපපපපපපපපපපපපපපප්පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපප ____ शब्दार्थ - संजुत्ता णावावाणियगा - नौकाओं, जहाजों द्वारा देशांतर में व्यापार करने वाले वणिक।
भावार्थ - उस हस्तिशीर्ष नामक नगर में बहुत से सांयात्रिक व्यापारी निवास करते थे। वे बहुत ही धनाढ्य थे यावत् प्रभावशाली थे, जिससे कोई उनकी अवहेलना करने में समर्थ नहीं थे। वे व्यापारी किसी समय एकत्र हुए-परस्पर मिले। यहाँ अर्हन्नक का वर्णन इस संबंध में योजनीय है यावत् सैंकड़ों योजन तक लवण समुद्र को पार कर गए।
(४) तए णं तेसिं जाव बहूणि उप्पाइयसयाई जहा माकंदियदारगाणं जाव कालियवाए य तत्थ समुत्थिए। तए णं सा णावा तेणं कालियवाएणं आघोलि(घुणि)जमाणी २ संचालिजमाणी २ संखोहिज्जमाणी २ तत्थेव परिभमइ। तए णं से णिज्जामए णट्ठमईए णट्ठसुईए णट्ठसण्णे मूढदिसाभाए जाए यावि होत्था ण जाणइ कयरं (देसं वा) दिसं वा विदिसं वा पोयवहणे अवहिए - त्ति कट्ट ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ।
शब्दार्थ - णट्ठमईए - नष्ट बुद्धि, सुईए - श्रुति-नौका को खेने का कौशल, सण्णे - . संज्ञा-होश-हवास, अवहिय - अपहत-ले जाया गया।
भावार्थ - उस समुद्री यात्रा के मध्य यावत् सैंकड़ों उत्पात उत्पन्न हो गए। एतद्विषयक वर्णन भयानक तूफान उठा तक, माकंदी पुत्रों के वृत्तान्त के तुल्य है, यहाँ ग्राह्य है।
उस तूफान के कारण उन सामुद्रिक वणिकों की नौका पानी में डूबती-उतराती, चलितपरिचलित होती, संक्षुब्ध होती हुई वहीं एक ही स्थान पर डोलने लगी। तब नौका के खिवैयों (निर्यामकों) की बुद्धि नष्ट हो गई। उनका कौशल मिट गया। वे होश-हवास खो बैठे। वे दिग्भ्रांत हो गए। उन्हें यह ज्ञान नहीं रहा कि उनका पोत किस देश, दिशा या विदिशा की ओर तूफान द्वारा ले जाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में उनका मनः संकल्प भग्न हो गया यावत् 'दुःखित होकर चिंतामग्न हो गए।
तए णं ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गम्भि(ब्भे)ल्लगा य
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