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________________ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन + पाण्डव मुनियों की भ० अरिष्टनेमि के.... २४७ KocraccccccccccccccccccccccccccccEDEOCOCOCCEEEEEEX (२२०) ___तए णं सा दोवई देवी सीयाओ पच्चोरुहइ जाव पव्वइया सुव्वयाए अजाए सिस्सिणीयत्ताए दलयइ एक्कारस अंगाई अहिजइ० बहूणि वासाणि छट्टट्ठमदसमदुवालसेहिं जाव विहरइ। भावार्थ - द्रौपदी देवी भी शिविका से उतरी यावत् प्रव्रज्या ग्रहण की एवं सुव्रता आर्या को शिष्या के रूप में समर्पित कर दी गई। उसने एकादश अंगों का अध्ययन किया। बहुत वर्षों तक क्रमशः दो, तीन, चार एवं पांच दिनों की यावत् तपस्या करती हुई संयम का पालन करती रही। (२२१) तए णं थेरा भगवंती अण्णया कयाई पंडुमहुराओ णयरीओ सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमंति २ त्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति। - भावार्थ - इसके पश्चात् स्थविर भगवंतों ने पांडु मथुरानगरी के सहस्राम्रवन उद्यान से विहार किया तथा बाहरी जनपदों में विचरण करने लगे। पाण्डव मुनियों की भगवान् अरिष्टनेमि के दर्शन की अभीप्सा (२२२) तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठणेमि जेणेव सुरद्वाजणवए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सुरट्ठाजणवयंसि संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ ४-एवं खलु देवाणुप्पिया! अरहा अरिट्ठणेमी सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ। तए णं से (ते) जुहिडिल्लपामोक्खा पंच अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा अण्णमण्णं सदावेंति २ ता एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिया! अरहा अरिट्ठणेमी पुव्वाणुपुव्विं जाव विहरइ, ... ... . . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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