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________________ २१२ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපු अवस्वापिनी विद्या को वापस खींच लिया। वैसा कर वह राजा पद्मनाभ के पास पहुँचा और बोला - देवानुप्रिय! मैं हस्तिनापुर से द्रौपदी देवी को यहाँ ले आया हूँ। वह आपकी अशोकवाटिका में स्थित है। इससे आगे तुम जानो। यों कहकर वह देव जिस दिशा से प्रादुर्भूत हुआ था, उसी ओर चला गया। (१५३) तए णं सा दोवई देवी तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समांणी तं भवणं असोगवणियं च अपच्चभिजाणमाणी एवं वयासी - णो खलु अम्हं एसे सए भवणे णो खलु एसा अम्हं सगा असोगवणिया। तं ण णज्जइ णं अहं केणई देवेण वा दाणवेण वा किंपुरिसेण वा किण्णरेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा अण्णस्स रणो असोगवणियं साहरिय-त्तिकटु ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ। शब्दार्थ - अपच्चभिजाणमाणी - अपरिचित जानती हुई। भावार्थ - थोड़ी देर बाद द्रौपदी देवी जागी। वह भवन और अशोक वाटिका उसे परिचित नहीं जान पड़े। वह बोली - यह मेरा अपना भवन और अशोक वाटिका नहीं है। न मालूम किसी देव, दानव, किंपुरुष, किन्नर, महोरग-नाग या गंधर्व द्वारा किसी दूसरे राजा की अशोक वाटिका में लाई गई हूँ। यह विचार कर वह मन ही मन बहुत दुःखित हुई यावत् आर्तध्यान-चिंता करने लगी। पद्मनाभ द्वारा काम-भोग का आह्वान . (१५४) तए णं से पउमणाभे राया ण्हाए जाव सव्वालंकार विभूसिए अंते उरपरियालं संपरिवुडे जेणेव असोगवणिया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता दोवती देवीं ओहय० जाव झियायमाणी पासइ २ ता एवं वयासी - किण्णं तुम देवाणुप्पिए! ओहय जाव झियाहि? एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए! मम पुव्वसंगइएणं देवेणं जंबुद्दीवाओ २ भारहाओ वासाओ हत्थिणापुराओ जयराओ जुहिडिल्लस्स रणो भवणाओ साहरिया, तं माणं तुमं देवाणुप्पिए! ओहय० जाव झियाहि, तुमं णं मए सद्धिं विपुलाई भोगभोगाइं जाव विहराहि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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