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________________ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - देव द्वारा द्रौपदी का अपहरण XXX ☐☐xxXxXxXxXxXx हुआ है, न होने योग्य है और न होगा ही कि द्रौपदी देवी पाँच पांडवों को छोड़कर अन्य के पास विपुल सुखभोग करती हुई रह सके । तथापि मैं तुम्हारा प्रिय कार्य करने हेतु देवी द्रौपदी को शीघ्र ही ले आता हूँ। यों कहकर वह देव उत्कृष्ट यावत् तीव्र-अतिवेग युक्त देवगति से लवण समुद्र के बीचोंबीच चलता हुआ हस्तिनापुर जाने को उद्यत हुआ । " देव द्वारा द्रौपदी का अपहरण २११ (१५१) तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणाउरे णयरे जुहिट्ठिल्ले राया दोवईए देवीए सद्धिं उप्पिं आगासतलंसि सुहप्पसुत्ते यावि होत्था । भावार्थ उस काल, उस समय राजा युधिष्ठिर महल के छत की अगासी पर द्रौपदी देवी के साथ सुखपूर्वक सोए हुए थे। Jain Education International (१५२) तए णं से पुव्वसंगइए देवे जेणेव जुहिट्ठिल्ले राया जेणेव दोवई देवी तेणेव उवागच्छइ २ ता दोवईए देवीए ओसोवणियं दलयइ २ त्ता दोवई देविं गिues ता ता उक्किट्ठाए जाव जेणेव अमरकंका जेणेव पउमणाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता पउंमणाभस्स भवणंसि असोगवणियाए दोवई देविं ठावेइ २ त्ता ओसोवणिं अवहरड़ २ त्ता जेणेव पउमणाभे तेणेव उवागच्छइ २ ता एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया! मए हत्थिणाउराओ दोवई देवी इह हव्वमाणीया तव असोगवणियाए चिट्ठइ । अओ परं तुमं जाणसि - त्तिकट्टु जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए । 1 शब्दार्थ - ओसोवणियं - अवस्वापिनी विद्या । भावार्थ तब राजा पद्मनाभ का पूर्वभव का साथी देव, जहाँ युधिष्ठिर और द्रौपदी देवी थे, वहाँ आया। आकर अवस्वापिनी विद्या द्वारा द्रौपदी को गहरी नींद में सुला दिया। उसे वहाँ से उठाया और उत्कृष्ट यावत् तीव्र देवगति से अमरकंका में, पद्मनांभ राजा के भवन में पहुँच गया। वहाँ भवनवर्ती अशोक वाटिका में द्रौपदी को रख दिया । For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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