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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - नारद का षडयंत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුදු
(१४६) तए णं से कच्छुल्लणारए उदयपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए णिसीयइ जाव कुसलोदंतं आपुच्छइ।
भावार्थ - कच्छुल्ल नारद जलछिड़क कर दर्भ बिछाकर, उस पर अपना आसन लगाकर बैठे यावत् उसने राजा से कुशल क्षेम पूछा।
(१४७) तए णं से पउमणाभे राया णियगओरोहे जायविम्हए कच्छुल्लणारयं एवं वयासी-तुब्भं देवाणुप्पिया! बहूणि गामाणि जाव गेहाइं अणुपविससि, तं अस्थि याई ते कहिंचि देवाणुप्पिया! एरिसए ओरोहे दिट्टपुव्वे जारिसए णं मम ओरोहे?
भावार्थ - फिर राजा पद्मनाभ जो अपने अंतःपुर से, अंतःपुर की रानियों के सौंदर्य से विस्मित था, कच्छुल्लनारद से यों बोला - देवानुप्रिय! आप बहुत से गाँवों यावत् घरों में प्रविष्ट होते रहे हैं। क्या आपने कहीं भी ऐसी सुंदर रानियाँ देखी हैं जैसी मेरे अंतःपुर में हैं?
(१४८) तए णं से कच्छुल्लणारए पउमणाभेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे ईसिं विहसियं करेइ २. त्ता एवं वयासी - सरिसे णं तुमं पउमणाभा! तस्स अगडददुरस्स। के णं देवाणुप्पिया! से अगडददुरे? एवं जहा मल्लिणाए। एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबू हीवे २ भारहेवासे हत्थिणाउरे णयरे दुपयस्स रण्णो धूया चुलणीए देवीए अत्तया पंडुस्स सुहा पंचहं पंडवाणं भारिया दोवई देवी रूवेण य जाव उक्किट्ठसरीरा। दोवईए णं देवीए छिण्णस्सवि पायंगुट्टयस्स अयं तव ओरोहे सइमंपि कलं ण अग्घइ-त्तिक? पउमणाभं आपुच्छइ० जाव पडिगए। ... भावार्थ - राजा पद्मनाभ द्वारा यों कहे जाने पर कच्छुल्ल नारद मुस्कुरा कर बोले - पद्मनाभ! तुम कुएं के मेंढक के समान हो। .
राजा बोला - कौनसा कुएं का मेंढक? यहाँ मल्ली अध्ययन में आया हुआ कुएं के मेंढक का प्रसंग. योजनीय है।
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