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________________ २०८ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र xacaoscopccccccccccccccccccccccxccccCCEEKEEK नारद का षडयंत्र (१४४) तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धदाहिणभरहवासे अमरकंका णाम रायहाणी होत्था। तत्थ णं अमरकंकाए रायहाणीए पउमणाभे णामं राया होत्था महया हिमवंत वण्णओ। तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाइं ओरोहे होत्था। तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सुणाभे णामं पुत्ते जुवराया यावि होत्था। तए णं से पउमणाभे राया अंतोअंतेउरंसि ओरोहसंपरिवुडे सीहासणवरगए विहरइ। ___ भावार्थ - उस काल, उस समय धातकीखण्ड नामक द्वीप में, पूरब दिशा में, दक्षिणार्द्ध भरत खण्ड में, अमरकंका (अपरकंका) नामक राजधानी थी। उसके राजा का नाम पद्मनाभ था। वह महाहिमवंत पर्वत की तरह दृढ़ता, सारवत्ता आदि लिए हुए था। उसका वर्णन विस्तृत औपपातिक सूत्र के अनुसार योजनीय है। - राजा पद्मनाभ के अंतःपुर में सात सौ रानियाँ थीं। पद्मनाभ के पुत्र का नाम सुनाभ था, जो युवराज के पद पर अभिषिक्त था। यह तब का प्रसंग है, जब राजा पद्मनाभ अपने अंतःपुर में रानियों से घिरा हुआ सिंहासनासीन था। . (१४५) . तए णं से कच्छुल्लणारए जेणेव अमरकंका रायहाणी जेणेव पउमणाभस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता पउमणाभस्स रण्णो भवणंसि झत्तिवेगेणं समोवइए। तए णं से पउमणाभे राया कच्छुल्लणारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आसणाओ अब्भुढेइ २ त्ता अग्घेणं जाव आसणेणं उवणिमंतेइ। शब्दार्थ - झत्ति - अतिशीघ्र। भावार्थ - कच्छुल्ल नारद अमरकंका राजधानी में पहुंचे, जहाँ पद्मनाभ राजा था। वे राजमहल में तीव्र गति से समवसृत हुए, आकाश से नीचे उतरे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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