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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - राजा पाण्डु द्वारा हस्तिनापुर का निमंत्रण
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कलसेंहि मज्जावेइ २ त्ता अग्गिहोमं कारवेइ पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य
पाणिग्गहणं करावेइ ।
भावार्थ तब राजा द्रुपद ने पांचों पांडवों एवं राजकुमारी द्रौपदी को पट्टासीन किया । सोने, चांदी के श्वेत-पीत कलशों से स्नान करवाया। वैसा कर अग्नि होम करवाया तथा पांच पांडवों के साथ द्रौपदी का पाणिग्रहण करवाया।
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(१२८)
तए णं से दुवए राया दोवईए रा० इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ तंजहा - अट्ठ हिरण्णकोडीओ जाव अट्ठ पेसणकारीओ दासचेडीओ अण्णं च विपुलं धणकणग जाव दलयइ। तए णं से दुवए राया ताई वासुदेवपामोक्खाइं विपुलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंध जाव पडिविसज्जेइ |
भावार्थ - तदनंतर राजा द्रुपद ने राजकुमारी द्रौपदी को आठ करोड़ स्वर्णमुद्राएँ यावत् आठ प्रेषणकारिकाएँ-अंतःपुर के बाहर का कार्य करने वाली दासियाँ, प्रचुर मात्रा में धन, स्वर्ण यावत् रत्नादि प्रीतिदान के रूप में दिए।
राजा द्रुपद ने वासुदेव आदि राजाओं को विपुल चतुर्विध आहार, पुष्प, वस्त्र, द्रव्य आदि द्वारा सत्कृत- सम्मानित कर विदा किया।
राजा पाण्डु द्वारा हस्तिनापुर का निमंत्रण
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तए णं से पंडूराया तेसिं वासुदेव पामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं करयल जाव एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया! हत्थिणाउरे णयरे पंचन्हं पंडवाणं दोवईए य देवीए कल्लाणकरे भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं अणुगिण्हमाणा अकाल परिहीणं समोसरह ।
शब्दार्थ - कल्लाणकरे - मंगल - महोत्सव ।
भावार्थ राजा पाण्डु ने वासुदेव आदि सहस्रों राजाओं को हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि बांधे, इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! हस्तिनापुर में पांचों पाण्डवों एवं द्रौपदी का मंगल महोत्सव होगा।
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