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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා अणुपविसइ करयल जाव तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायवरसहस्साणं पणामं करेइ।
शब्दार्थ - सारत्थं - रथचालन।
भावार्थ - राजकुमार धृष्टद्युम्न द्रौपदी का सारथी बना। रथ रवाना हुआ। श्रेष्ठ राजकन्या द्रौपदी कांपिल्यपुर नगर के बीचोंबीच होती हुई (यहाँ इसी के समान पूर्व वर्णन से यह अंतर है) स्वयंवर-मण्डप में पहुँची। रथ रुका। वह नीचे उतरी। क्रीड़ाकारिणी धाय एवं लेखिका के साथ स्वयंवर-मण्डप में प्रविष्ट हुई। दोनों हाथ जोड़कर, अंजलि बाँधे, सिर झुकाए, वासुदेव आदि सहस्रों राजाओं को उसने प्रणाम किया।
(१२१) तए णं सा दोवई रा० एगं महं सिरिदामगंडं किं ते? पाडलमल्लियचंपय जाव सत्तच्छयाईहिं गंधद्धणिं मुयंतं परम सुहफासं दरिसणिज्जं गेण्हइ।..
भावार्थ - उत्तम राजकन्या द्रौपदी ने एक बड़ा श्रीदामकाण्ड (शोभामय-माला-समूह) लिया, जो गुलाब, मल्लिका, चंपक यावत् सप्तपर्ण आदि के पुष्पों से वह संग्रथित था। अत्यंत सुरभित तथा परम सुखद स्पर्श युक्त एवं दर्शनीय था।
(१२२) तए णं सा किड्डाविया जाव सुरूवा जाव वामहत्थेणं चिल्लगं दप्पणं गहेऊण सललियं दप्पण संकंतबिंबसंदंसिए य से दाहिणेणं हत्थेणं दरिसिए पवररायसीहे फुडविसयविसुद्धरिभियगंभीर महुर भणिया सा तेसिं सव्वेसिं पत्थिवाणं अम्मापिऊणं वंससत्तसामत्थगोत्त-विक्कंतिकंतिबहविह-आगममाहप्परूवजोव्वणगुणलावण्ण-कुलसीलजाणिया कित्तणं करे।
शब्दार्थ - चिल्लगं - चमक युक्त, दप्पण - दर्पण, फुड - स्पष्ट शब्द एवं अर्थ युक्त, पत्थिवाणं - राजाओं के, सत्त - सत्त्व, सामत्थ - सामर्थ्य, विक्कंति - विक्रम, बहुविह आगम - बहुविध शास्त्रज्ञान, माहप्प - माहात्म्य, कित्तणं - कीर्तन-गान।
भावार्थ - तब उस रूपवती, क्रीड़ा कारिका परिचारिका ने यावत् अपने बाएँ हाथ में एक
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