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________________ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - स्वयंवर का शुभारंभ १६१ Socccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccce विभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरेंट० सेयवरचामराहिं हयगय जाव परिवुडा सव्विढ्ढीए जाव रवेणं जेणेव सयंवरेमंडवे तेणेव उवागच्छति २त्ता अणुप्पविसंति २त्ता पत्तेयं २ णामंकेसु णिसीयंति दोवइं रायवरकण्णं पडिवालेमाणा चिटुंति। भावार्थ - वासुदेव आदि सहस्रों राजा प्रातःकाल होने पर अलंकार आदि से विभूषित होकर यावत् अपने-अपने हाथियों पर सवार हुए। उन पर कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र तने थे। श्वेत चंवर डुलाए जा रहे थे, यावत् हाथी-घोड़ों पर आरूढ योद्धा उनके चारों ओर चल रहे थे। इस प्रकार अत्यंत ऋद्धि, वैभव यावत् तुमुल वाद्य ध्वनि के साथ वे स्वयंवर मंडप की ओर चले-पहुँचे, मंडप में प्रवेश किया तथा अपने-अपने नामों से अंकित आसनों पर बैठे एवं उत्तम राजकन्या द्रौपदी के आने की प्रतीक्षा करने लगे। (११७) ___तए णं से दुवए राया कल्लं पहाए जाव विभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंट० हयगय० कंपिल्लपुरं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ० जेणेव सयंवरामंडवे जेणेव वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ २ ता तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं करयल जाव वद्धावेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स सेयवरचामरं गहाय . उववीयमाणे चिट्ठइ। __ भावार्थ - तत्पश्चात् राजा द्रुपद ने प्रातःकाल स्नान किया यावत् आभरण धारण किए। वह हाथी पर सवार हुआ। कोरंट पुष्पों की माला से युक्त छत्र उस पर तना था, चंवर डुलाए जा रहे थे। चतुरंगिणी सेना के साथ, अपने योद्धाओं से घिरा हुआ वह कांपिल्यपुर नगर के बीचों-बीच होता हुआ निकला। स्वयंवर मंडप में जहां वासुदेव आदि सहस्रों राजा थे, आया। आकर उन राजाओं को हाथ-जोड़ कर यावत् मस्तक पर अंजलि बांधकर उन्हें वर्धापित किया तथा वह कृष्ण वासुदेव के चंवर डुलाता हुआ, उनके निकट स्थित हुआ। (११८) ... तए णं सा दोवई रायवरकण्णा जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता मजणघरं अणुपविसइ २ त्ता ण्हाए कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल पायच्छित्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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