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________________ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - एक साथ भोजन का निर्णय १३७ scacanccccccccccccccccccccRakseDECENSERECOGERICCESSEX भावार्थ - उस चंपा नगरी में सोम, सोमदत्त एवं सोमभूति नामक तीन ब्राह्मण-बंधु रहते थे। वे धनाढ्य थे यावत् ऋग्वेद यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद यावत् अन्यान्य ब्राह्मण शास्त्रों में सुपरिनिष्ठित-अत्यंत निष्णात थे। उन तीनों ब्राह्मणों के क्रमशः नागश्री, भूतश्री, यक्षश्री नामक पत्नियाँ थीं। उनके हाथ पैर आदि समस्त अंग सुकुमार थे यावत् वे उन ब्राह्मण बन्धुओं को इष्ट-प्रिय थीं। वे ब्राह्मण मनुष्य जीवन संबंधी काम भोगों को भोगते हुए सुख पूर्वक निवास करते थे। एक साथ भोजन का निर्णय • तए णं तेसिं माहणाणं अण्णया कयाइ एगयओ समुवागयाणं जाव इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमे विउले धणे जाव सावएज्जे अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएगें। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! अण्णमण्णस्स गिहेसु कल्लाकल्लिं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेउं २ परिभुंजेमाणाणं विहरित्तए। शब्दार्थ - सावएज्जे - पद्मराज, पुखराज आदि द्रव्य, अलाहि - पर्याप्त। भावार्थ - वे. ब्राह्मण बंधु किसी समय जब आपस में मिले तो उनके मन में ऐसा भाव समुत्पन्न हुआ। वे परस्पर इस प्रकार बात करने लगे - देवानुप्रियो! हमारे पास विपुल धन है यावत् पद्मराग आदि विविध प्रकार के बहुमूल्य रत्न हैं। हमारी संपत्ति इतनी अधिक है कि आने वाली सात पीढ़ियों तक प्रचुर मात्रा में दान, भोग, पारिवारिकों में वितरण इत्यादि करते रहें तो भी कम न पड़े। इसलिए कितना अच्छा हो हम एक दूसरे के घर में प्रतिदिन बारी-बारी से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य आदि बनवाकर एक साथ खाने का आनंद लें। (५) अण्णमण्णस्स एयमढें पडिसुणेति कल्लाकल्लिं अण्णमण्णस्स गिहेसु विपुलं असणं ४ उवक्खडावेंति २ त्ता परिभुजेमाणा विहरंति। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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