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नंदी फल नामक पन्द्रहवां अध्ययन - सहयात्रियों को चेतावनी
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देवानुप्रियो! उन वृक्षों के मूल, कंद, पत्ते, बीज, कोंपल आदि को जो खा लेता है, उनकी छाया में विश्राम करता है, उसे एक बार तो यह सब बहुत ही सुखप्रद प्रतीत होता है किंतु पश्चात् उनकी परिणति अकाल मृत्यु के रूप में हो जाती है।
इसलिए देवानुप्रियो! उन नंदीफल नामक वृक्षों के मूल यावत् फलादि का आहार न करे यावत् उनकी छाया में विश्राम न करे। अन्यथा जीवन से हाथ धोना पड़ेगा।
अतएव देवानुप्रियो! तुम किन्हीं दूसरे वृक्षों के मूल, फल आदि खाना, उनकी छाया में विश्राम करना। ऐसी घोषणा कर मुझे सूचित करो। ..
(१०) तए णं धणे सत्थवाहे सगडीसागडं जोएइ २ त्ता जेणेव णंदिफला रुक्खा तेणेव उवागच्छइ २ ता तेसिं णंदिफलाणं अदूरसामंते सत्थणिवेसं करेइ, करेत्ता दोच्चंपि तच्चपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी - तुब्भे णं देवाणुप्पिया! मम सत्थ णिवेसंसि महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणा २ एवं वयह-एए णं देवाणुप्पिया! ते णंदिफला (रुक्खा) किण्हा जाव मणुण्णा छायाए। तं जो णं देवाणुप्पिया! एएसिं णंदिफलाणं रुक्खाणं मूलाणि वा कंद० पुप्फ-तयापत्त- फलाणि जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेइ। तं मा णं तुब्भे जाव, दूरं दूरेणं परिहरमाणा वीसमह मा णं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविस्संति अण्णेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव वीसमह त्तिकदृ घोसणं जाव पच्चप्पिणंति।
भावार्थ - तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने अपने गाड़ी-गाड़े जुतवाए। चलते हुए उस स्थान पर पहुंचा, जहाँ नंदीफल नामक वृक्ष थे। उनसे न दूर न निकट पड़ाव डलवाया। दूसरी बारतीसरी बार कौटुंबिक पुरुषों को बुला कर कहा कि मेरे काफिले के पड़ाव में तुम जोर-जोर से पूर्ववत् घोषणा करो कि इन पत्रित, पुष्पित, फलित, हरित शोभायुक्त नंदीफल वृक्षों के फल आदि का कोई भी सेवन नहीं करे और न छाया में विश्राम ही करे। जो वैसा करेगा, वह मृत्यु को प्राप्त होगा। पूर्ववत् घोषणा में यह भी कहा गया कि उन नंदी वृक्षों से दूर रहते हुए अन्यत्र विश्राम करो, जिससे अकाल में ही प्राण त्याग न करना पड़े। तुम अन्य वृक्षों के मूल यावत् फल आदि का आहार करो, उन्हीं के नीचे विश्राम करो।
सार्थवाह ने कौटुंबिक पुरुषों को यह घोषित कर वापस सूचित करने की आज्ञा दी।
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