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________________ XXX तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन ********* कनकध्वज द्वारा क्षमायाचना ************OGOK - (५७) तणं से तेयलिपुत्ते अणगारे कणगज्झयस्स रण्णो तीसे य महइमहालिया ए परिसाए धम्मं परिकहेइ । तए णं से कणगज्झए राया तेयलिपुत्तस्स केवलिस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं सावगधम्मं पडिवज्जइ २ त्ता समणोवासए जाए जाव अहिगयजीवाजीवे । भावार्थ - तदनंतर तेतलीपुत्र ने कनकध्वज राजा तथा बहुत बड़ी परिषद् उपस्थित जनसमुदाय को धर्मोपदेश दिया। राजा कनकध्वज ने केवली तेतली पुत्र से धर्मोपदेश सुनकर द्वादश लक्षण श्रावक धर्म स्वीकार किया । श्रमणोपासक हुआ यावत् उसने जीव - अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त किया । (५८) तणं तेयलिपुत्ते केवली बहूणि वासाणि केवलि परियागं पाउणित्ता जाव सिद्धे । भावार्थ - इस प्रकार तेतली पुत्र बहुत वर्षों तक केवलि पर्याय का पालन कर यावत् सिद्ध हुए । (५६) · १२५ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं चोद्दसमस्स गायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्तिबेमि । Jain Education International भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी बोले- हे जंबू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने चवदहवें ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ कहा है। जैसा मैंने श्रवण किया, वैसा ही कहता हूँ । गाहा- जाव ण दुक्खं पत्ता माणब्भंसं च पाणिणो पायं । aण धम्मं गेति भावओ तेयलिसुउव्व ॥१॥ ॥ चोद्दसमं अज्झयणं समत्तं ॥ -गाथा जब तक प्राणी मानभ्रंश - अपमान रूप या तिरस्कार जनित दुःख नहीं पाते, तब तक वे धर्म को ग्रहण नहीं करते। जैसे तेतली पुत्र के साथ घटित हुआ-राजा द्वारा अपमान किए जाने पर ही उसकी धर्म की ओर प्रवृत्ति हुई ॥ १ ॥ ॥ चौदहवां अध्ययन समाप्त ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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