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तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन ०००००००8888888888888888
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कनकध्वज का चयन : राज्याभिषेक
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तणं से कणगज्झए कुमारे राया जाए महयाहिमवंत मलय० वण्णओ जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ । तए णं सा पउमावई देवी कणगज्झयं रायं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एस णं पुत्ता!तव रज्जे जाव अंतेउरे य तुमं च तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्स पहावेणं, तं तुमं णं तेयलिपुत्तं अमच्चं आढाहि परिजाणाहि सक्कारेहि सम्माणेहि इंतं अब्भुट्ठेहि ठियं पज्जुवासाहि वच्वंतं पडिसंसाहेहि अद्धासणेणं उवणिमंतेहि भोगं च से अणुवड्ढे हि ।
शब्दार्थ - इंतं - आते हुए, वच्चंतं - बोलते हुए, पडिसंसाहेहि - प्रशंसा करना ।
भावार्थ तब सामंत आदि विशिष्ट जनों ने उसका अभिषेक किया। कनकध्वज राजा हो गया। वह लोकमर्यादानुपालक होने से महा हिमवान् जैसा, यश और कीर्ति के संप्रसार के कारण महामलय सदृश तथा दृढ़ कर्त्तव्य निष्ठ होने के कारण मेरु के जैसा था। एतद्विषयक विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र से ग्राह्य है यावत् कनकध्वज राज्य का प्रशासन करता हुआ रहने लगा । रानी पद्मावती ने राजा कनकध्वज को बुलाया और कहा- पुत्र ! यह तुम्हारा राज्य यावत् राष्ट्र सेना, वाहन, निधान, कोठार, अन्तःपुर सब तुम्हें तेतली - पुत्र के प्रभाव से, अनुग्रह से प्राप्त हुए हैं। तुम अमात्य तेतली पुत्र का आदर करना । उसे अपना हितकर समझना, सत्कार - सम्मान करना। जब वे आएं तब खड़े होना । जब पास में खड़े हो तब विनय प्रदर्शित करना। जब वे बोलें तो वचनों की प्रशंसा करना, बैठने के लिए अपने आसन का अर्द्ध भाग प्रदान करना । उसके सुख-भोग के साधनों को अनुवर्द्धित करना, बढ़ाते रहना ।
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तणं गज्झए पउमावईए देवीए तहत्ति वयणं पडिसुणेइ जाव भोगं च से संवड्ढेइ ।
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भावार्थ राजा कनकध्वज ने राजमाता पद्मावती के कथन को “ऐसा ही करूँगा” यह कह कर स्वीकार किया यावत् उसने पद्मावती के कथनारूप तेतली पुत्र का सत्कार - सम्मान किया, उसके सुखोपभोग के साधनों को बढाया।
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