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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शब्दार्थ - अभिसेयारिहे - अभिषेकार्ह राज्याभिषेक योग्य ।
भावार्थ - देवानुप्रिय ! राजा कनकरथ राज्य में, राष्ट्र में अत्याधिक आसक्त होने से जन्मने वाले पुत्रों को विकलांग करवाता रहा। देवानुप्रिय ! आज तक हम राजा के अधीन रहे हैं, यावत् हमारे सभी कार्य राजा के ही आदेश- निर्देश में होते रहे हैं। देवानुप्रिय ! राजा के सभी कार्यों में यावत् राज्य विषयक समान दायित्वों के निर्वहण में चिंतनशील रहे हैं। देवानुप्रिय ! राज लक्षण संपन्न, राज्याभिषेक योग्य उत्तराधिकारी हमें चयनित कर दें। जिसका हम बड़े समारोह के साथ राज्याभिषेक करे ।
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कनकध्वज का चयन : राज्याभिषेक
(४०)
तणं तेयलिपुत्ते तेसिं ईसर जाव एयमट्ठ पडिसुणेइ २ त्ता कणगज्झयं कुमार हायं जाव सस्सिसीरयं करेइ २ त्ता तेसिं ईसर जाव उवणेइ २ ता एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया! कणगरहस्स रण्णो पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए कणगज्झए णामं कुमारे अभिसेयारिहे रायलक्खण संपण्णे मए कणगरहस्स रण्णो रहस्सिययं संवडिए, एयं णं तुब्भे महया २ रायाभिसेणं अभिसिंचह । सव्वं च तेसिं उट्ठाणपरियावणियं परिकहेइ । तए णं ते ईसर जाव कणगज्झयं कुमारं महया २ रायाभिसेएणं अभिसिंचंति ।
शब्दार्थ - उट्ठाणपरियावणियं जन्म से लेकर पालन-पोषण तक का वृत्तान्त । भावार्थ - तेलीपुत्र ने तब उन सामंतों, राज्याधिकारियों, विशिष्टजनों का यह कथन सुन ( उसने) राजकुमार कनकध्वज को स्नानादि करवाया यावत् वस्त्राभूषण द्वारा शोभा युक्त किया, उनके समक्ष उपस्थित किया और कहा- देवानुप्रियो ! यह राजा पद्मावती देवी की कुक्षि से उत्पन्न कनकरथ का पुत्र राजकुमार कनकध्वज है। यह राज्याभिषेक के योग्य है, राजोचित लक्षणों से युक्त है। मैंने राजा कनकरथ से छिपाकर इसका संवर्द्धन किया। तुम लोग इसका बड़े समारोह के साथ राज्याभिषेक करो। यों कहते हुए तेतली पुत्र ने राजकुमार के जन्म से लेकर पालनपोषण पर्यंत सारा वृत्तांत कह सुनाया। यह सुनकर सामंत आदि विशिष्ट पुरुषों ने राजकुमार कनकध्वज का बड़े समारोह के साथ राज्याभिषेक किया।
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