________________
तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन 986086660
पोहिला द्वारा श्राविकाव्रत स्वीकार
-
-
पोट्टिला द्वारा श्राविकाव्रत स्वीकार
********
(३२)
तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एवं वयासी - इच्छामि णं अज्जाओ ! तुम्हं अंतिए केवलिपण्णत्तं धम्मं णिसामित्तए । तए णं ताओ अज्जाओ पोट्टिलाए विचित्तं धम्मं परिकहेंति । तए णं सा पोट्टिला धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्ठ० एवं वयासी - सद्दहामि णं अज्जाओ ! णिग्गंथं पावयणं जाब से जहेयं तुब्भे वयह, इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव धम्मं पडिवज्जित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया !
-
Jain Education International
भावार्थ तब पोट्टिला ने उनसे कहा आर्याओ! मैं आपसे केवलि प्ररूपित धर्म सुनना
चाहती हूँ। तब साध्वियों ने पोट्टिला को विविध प्रकार से धर्म की शिक्षा दी ।
पोट्टिला धर्मोपदेश सुनकर हर्षित और परितुष्ट हुई और बोली- आर्याओ ! मुझे अर्हत सिद्धां में श्रद्धा है। वह वैसा ही है, जैसा आप बतलाती हैं। आपका फरमाना यथार्थ है । मैं आपसे पांच अणुव्रत यावत् सात शिक्षा व्रत मय श्रावक धर्म स्वीकार करना चाहती हूँ। साध्वियों ने कहा- देवानुप्रिये! जिससे तुम्हें सुख मिले, वैसा करो ।
(३३)
तणं सा पोट्टिला तासिं अज्जाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव धम्मं पडिवज्जइ ताओ अज्जाओ वंदइ णमंसइ वं० २ ता पडिविसज्जेइ । तए णं सा पोट्टिला समणोवासिया जाया जाव पडिलाभेमाणी विहर ।
१०६
००००००SOOSR
भावार्थ - तदनंतर पोट्टिला ने उन साध्वियों से द्वादश लक्षण श्रावक धर्म स्वीकार किया । उन्हें वंदन, नमन कर विदा किया।
तत्पश्चात् पोट्टिला श्रमणोपासका हो गई यावत् वह श्रमण निर्ग्रन्थों को प्रासुक - एषणीय आहार आदि देती हुई रहने लगी।
(३४)
तणं ती पोहिलाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org