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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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एजमाणे पासइ २ त्ता हट्ठतुट्ठे आसणाओ अब्भुट्ठेइ २ त्ता सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ २ त्ता आसणेणं उवणिमंतेइ २ त्ता आसत्थे वीसत्थे सुहासणवरगए एवं वयासीसंदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणपओयणं ?
शब्दार्थ - अब्भिंतरठाणिज्जा व्यक्तिगत (आंतरिक) कार्य करने वाले, पओयणं
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प्रयोजन |
भावार्थ - तेलीपुत्र ने घुड़सवारी से लौटते ही अपने व्यक्तिगत कार्य करने वाले पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो ! तुम स्वर्णकार मूषिकारदारक के पास जाओ और उसकी पुत्री, भद्रा की आत्मजा, पोट्टिला को मुझे पत्नी के रूप में देने का अनुरोध करो। तेतली पुत्र द्वारा यों कहे जाने पर वे बड़े हृष्ट-पुष्ट हुए यावत् उन्होंने हाथ जोड़ अंजलि कर, उसके वचन को स्वीकार किया । मूषिकारदारक के घर की ओर चल पड़े। स्वर्णकार ने जब उन्हें आता हुआ देखा तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ, आसन से उठा, उठकर अगवानी हेतु सात-आठ कदम सामने जाकर उनको लाया। उनसे आसन ग्रहण करने का निवेदन किया। वे सुखासन पर आसीन हुए, शाश्वत - विश्वस्त हुए- सुसताए तब स्वर्णकार उनसे बोला- देवानुप्रियो ! किस प्रयोजन से आपका मेरे यहाँ आगमन हुआ है ?
पाणिग्रहण का प्रस्ताव (ह)
तए णं ते अब्भिंतरठाणिजा पुरिसा कलायं २ एवं वयासी - अम्हे णं देवाणुप्पिया! तव धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स भारियत्ताए वरेमो, तं जड़ णं जाणसि देवाणुप्पिया! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो ता दिज्जउ णं पोट्टिला दारिया तेयलिपुत्तस्स, ता भण देवाणुप्पिया ! किं दलामो सुक्कं ?
भावार्थ - तब उन निजी आन्तरिक कार्य करने वाले पुरुषों ने स्वर्णकार मूषिकारदारक से कहा - देवानुप्रिय ! हम तुम्हारी पुत्री, भद्रा की आत्मजा पोट्टिला की तेतली पुत्र की भार्या के रूप में मांग करते हैं। यदि तुम इसे उचित तथा प्रशंसनीय, दोनों के लिए एक जैसा समान,
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