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________________ मण्डुक (द१र) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन - दर्दुर द्वारा तपश्चरण . ८७ scccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccsex शब्दार्थ - अहण्णे - अधन्य। भावार्थ - तब उस मेंढक के मन में ऐसा विचार यावत् मनोभाव उत्पन्न हुआ - मैं इसी राजगृह में नंद नामक धनाढ्य मणिकार था। उस काल, उस समय भगवान् महावीर स्वामी पधारे। मैंने भगवान् महावीर स्वामी के पास पांच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत यावत् द्वादशविध श्रावकव्रत स्वीकार किए। तत्पश्चात् साधुओं का दर्शन यावत् सान्निध्य लाभ न रहने से मिथ्यात्व में विपरिणत हो गया-सम्यक्त्वी से मिथ्यात्वी हो गया। फिर ऐसा प्रसंग बना ग्रीष्म काल के समय मेरे मन में पुष्करिणी बनाने का भाव जागा। फिर मैंने अपने चिंतन के अनुरूप. राजाज्ञा लेकर नंदा पुष्करिणी वनखण्ड तथा चतुर्विध शालाओं का निर्माण किया। तदनंतर मैं अत्यधिक रुग्ण हुआ, जिसकी चिकित्सा किसी भी तरह नहीं हो सकी। अंत समय में मैं नंदा पुष्करिणी में मोहित, मूछित एवं आसक्त रहा, जिससे मेरा मेंढक के रूप में जन्म हुआ। अहो! मैं कितना अधन्य, पापिष्ठ और अकृतपुण्य हूं, जो निर्ग्रन्थ प्रवचन से हट गया, भ्रष्ट हो गया, परिभ्रष्ट हो गया, पृथक् हो गया। मेरे लिए यह उत्तम होगा कि मेरे द्वारा पूर्व में स्वीकार किए गए पांच अणुव्रतों एवं सात शिक्षाव्रतों को स्वीकार कर लूँ। ... दर्दुर द्वारा तपश्चरण ........ . (२७) . एवं संपेहेइ २ ता पुव्वपडिवण्णाइं पंचाणुव्वयाइं जाव आरुहेइ २ त्ता इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पड़ मे जावजीवं छटुं छठेणं अणिक्खित्तेणं अप्पाणं भावमाणस्स विहरित्तए। छट्ठस्स वि य णं पारणगंसि कप्पइ मे णंदाए पोक्खरिणीए परिपेरंतेसु फासुएणं ण्हाणोदएणं उम्मद्दणोलोलियाहि य वित्तिं कप्पेमाणस्स विहरित्तए। इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ जावजीवाए छटुं-छ?णं जाव विहरइ। शब्दार्थ. - अणिक्खित्तेणं - निरंतर, उम्मद्दणोल्लोलियाहि - लोगों द्वारा अपनी देह पर किए गए उबटन से गिरे हुए पिष्ठी कणों से। भावार्थ - इस प्रकार संप्रेक्षण, चिंतन कर उसने पूर्व स्वीकृत पांच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रत अंगीकार कर लिए। वैसा कर उसने अभिग्रह-अन्तः संकल्प किया कि आज से मैं यावज्जीवन बेले-बेले की तपस्या से आत्मभावित होता रहूँगा। बेले के पारणे में भी मैं नंदा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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