SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मण्डुक (दर्दुर) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन - जाति स्मरण ज्ञान की उत्पत्ति EcccccccccccccccccccccccccccccccGGEDGEOGGOOGGEEE . नंद उन सोलह रोगों से अभिभूत, पीड़ित होता हुआ नंदा पुष्करिणी में मूछित-मोह विमूढ हो गया। जिसके परिणाम स्वरूप उसने तिर्यंच आयु का बंध किया, प्रदेश बंध किया। आर्तध्यान से पीड़ित होते हुए आयुष्य पूर्ण होने पर वह एक मेंढकी की कोख में आया। विवेचन - अपने द्वारा बनाई गई पुष्करिणी में नंद के अत्यधिक मोह मूर्छा एवं आसक्त भाव के कारण, उसके कर्म बंध का सूचन-'णिबद्धाउए' तथा 'बद्धपएसिए' - इन दो पदों द्वारा किया गया है। . कर्म बंध के प्रकृति बंध, स्थिति बंध, अनुभाग बंध और प्रदेश बंध-ये चार प्रकार हैं। . ___ यहाँ 'णिबद्धाउए' पद आयुष्य के प्रकृति बंध, स्थिति बंध और अनुभागबंध का सूचक है तथा 'बद्धपएसिए' प्रदेश बंध का सूचक है। (२३) तए णं णंदे ददुरे गम्भाओ विणिम्मुक्के समाणे उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते णंदाए पोक्खरिणीए अभिरममाणे २ विहरइ। . शब्दार्थ - विण्णायपरिणयमित्ते - विज्ञात परिणतमात्र-योनि के अनुरूप परिपक्वज्ञान . युक्त, जोव्वणग़मणुपत्ते - युवावस्था प्राप्त। ___भावार्थ - तदनंतर यथा समय नंद मंडूक अपनी माता के गर्भ से बाहर निकला। क्रमशः उसने बाल्यावस्था पार की। युवा हुआ। अपनी योनि के अनुरूप कूदने, उछलने, दौड़ने आदि के ज्ञान से संपन्न बना तथा नंदा पुष्करिणी में रमण करता हुआ रहने लगा। जाति स्मरण ज्ञान की उत्पत्ति (२४) तए णं णंदाए पोक्खरिणीए बहुजणे ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ ४ - धण्णे णं देवाणुप्पिया! णंदे मणियारे जस्स णं इमेयारूवा गंदा पुक्खरिणी चाउक्कोणा जाव पडिरूवा जस्स णं पुरथिमिल्ले वणसंडे चित्तसभा अणेगखंभ० तहेव चत्तारि सहाओ जाव. जम्मजीवियफले। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy