________________
मण्डुक (दर्दुर) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन - प्रसाधन-कक्ष
७६ පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුදු बहूणं समणाण य अणाहाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य अलंकारियकम्मं करेमाणा २ विहरंति।
शब्दार्थ - अलंकारियपुरिसा - प्रसाधन निपुण नापित पुरुष।
भावार्थ - मणिकार श्रेष्ठी नंद ने उत्तरी वनखंड में बड़ा प्रसाधन कक्ष बनाया, जो सैकड़ों खंभों पर टिका हुआ था। वहाँ उसने नापित आदि प्रसाधन दक्ष पुरुषों को भोजन, वेतन आदि पर नियुक्त किया। बहुत से श्रमणों, अनाथों, विक्षिप्तों, रोगियों, दुर्बलों की केश-कर्तन, तेल मर्दन आदि विभिन्न रूपों में सेवा कार्य करते रहते थे।
(१८) तए णं तीए णंदाए पोक्खरिणीए बहवे सणाहा य अणाहा य पंथिया य पहिया य करोडिया य (कारिया य) तणहारा पत्तहारा कट्ठहारा अप्पेगइया पहायंति अप्पेगइया पाणियं पियंति अप्पेगइया पाणियं संवहंति अप्पेगइया विसजिय-सेयजल्लमल-परिस्स-मणिद्दखुप्पिवासा सुहंसुहेणं विहरंति । रायगिहविणिग्गओ वि जत्थ बहजणो किं ते जलरमण विविहमजणकयलिलयाघरय-कुसुमसत्थरय-अणेगसउणगण - रुय-रिभिय संकुलेसु सुहंसुहेणं
अभिरममाणो २ विहरइ। . ... शब्दार्थ - विसजिय - परिव्यक्त, जल्ल-मल्ल - शरीर का पसीना, देह का मैल, कयलिलयाघरय - कदली के पादपों और लताओं से निर्मित मंडप, कुसुमसत्थरय - पुष्प संसरण-फूलों से युक्त बिछौने, रुय - पक्षियों के शब्द, रिभिय - मधुर ध्वनि।
भावार्थ - उस नंदा पुष्करिणी में अनेक सनाथ, अनाथ, पांथिक, पथिक, कापालिक, कार्पटिक, तण्हहारा-घसियारे, पत्ते ढोने वाले, लकड़हारे-इनमें से अनेक स्नान करते, पानी पीते, . कतिपय ले जाते। . कई अपने शरीर का पसीना, मैल आदि साफ करते। कई अपनी भूख प्यास मिटा कर विश्राम करते। इस प्रकार वे सभी वहाँ सुख पूर्वक उसका उपयोग करते।।
और अधिक क्या कहा जाय - राजगृह से आए हुए अनेक व्यक्ति विविध जल-क्रीड़ा, स्नान, अनेक पक्षियों की मधुर ध्वनि से व्याप्त लतागृहों, कदली गृहों, पुष्पाच्छादित आसनों पर विश्राम करते, आनंदोत्साह पूर्वक मनोरंजन करते, मन बहलाते।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org