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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र అంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంcceerence सर्व सुविधासंपन्न चिकित्सालय
(१६) तए णं णंदे मणियारसेट्टी पच्चत्थिमिल्ले वणसंडे एगं महं तेगिच्छियसालं करावेइ अणेगखंभसय जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे वेजा य वेजपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य दिण्णभइभत्तवेयणा बहूणं वाहियाणं य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य तेइच्छकम्मं करेमाणा. विहरंति। अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसा दिण्णभइ० तेसिं बहूणं वाहियाण य रोगि० गिला० दुब्बलाण य ओसहभेसज्जभत्तपाणेणं पडियारकम्मं करेमाणा विहरंति।
शब्दार्थ - तेगिच्छियसालं - चिकित्साशाला, वेजा - वैद्य, जाणुया - विधिवत् चिकित्साशास्त्र न पढ़ने पर भी इसमें. अनुभवी (ज्ञायक), कुसला-बुद्धि कौशल द्वारा औषधियों के नवाभिनव योगों के प्रयोक्ता, वाहियाणं - कुष्ठ आदि से पीड़ित दुःखीजनों का, गिलाणाणग्लान-चित्त भ्रांतों या विक्षिप्तजनों का, रोगियाण - ज्वरादि से पीड़ित रोगियों का, पडियारकम्मप्रतिचार कर्म-सेवा।
भावार्थ - मणिकार श्रेष्ठी नन्द ने पश्चिम दिशावर्ती वनखंड में एक विशाल चिकित्साशाला का निर्माण करवाया, जो सैकड़ों खंभों पर अवस्थित थी यावत् बड़ी सुंदर थी। वहाँ उसने वैद्यों, अनुभवी नाड़ी वैद्यों, बुद्धि कौशल से औषधियों के नवाभिनव प्रयोक्ताओं को तथा उनके कार्य में सहयोग एवं अनुभव प्राप्ति हेतु उनके पुत्रों को भृति, भोजन एवं वेतन पर नियुक्त किया। वे अनेक प्रकार के शारीरिक एवं चित्तभ्रमादि मानसिक रोगों की चिकित्सा करते।
ऐसे बहुत से परिचारकों को नियुक्त किया जो चिकित्सार्थ आए हुए जनों की औषध, भेषज, दवा, भोजन, पेय पदार्थ आदि द्वारा सेवा करते थे।
प्रसाधन-कक्ष
(१७) तए णं णंदे उत्तरिल्ले वणसंडे एगं महं अलंकारियसभं करेइ अणेगखंभसय जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे अलंकारियपुरिसा मणुस्सा दिण्णभइभत्तवेयणा
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