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________________ मण्डुक (दर्दुर) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन - नंदा पुष्करिणी की सौंदर्य वृद्धि ७५ (११) तए णं से णंदे सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णाए समाणे हट्टतुट्टे रायगिहं (णगरं) मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ २ ता वत्थुपाढयरोइयंसि भूमिभागंसि णंदं पोक्खरणिं खणाविउं पयत्ते यावि होत्था। तए णं सा गंदा पोक्खरणी अणुपुव्वेणं खणमाणा २ पोक्खरणी जाया यावि. होत्था चाउक्कोणा समतीरा अणुपुव्वसु जायवप्पसीयलजला संछण्ण पत्तविसमुणाला बहु उप्पलपउमकुमुदणलिणिसुभसोगंधियपुंडरीयमहापुंडरीयसयपत्तसहस्सपत्तपफुल्ल केसरोववेया परिहत्थ-भमंत-मत्तछप्पयअणेगसउणगणमिण वियरिय सदुण्णइय महुर सरणाइया पासाईया ४।। शब्दार्थ - पयत्ते - प्रवृत्त, वप्प - वप्र-नीचे का गहरा, संकरा भाग (केदाराकार), विस - कमलकन्द, मुणाला - कमल नाल, परिहत्थ - प्रचुर, सउणगण मिहुण - हंस, सारस आदि पक्षियों के जोड़े, सदुण्णइय - उत्कृष्ट, णाइया - नाद युक्त। भावार्थ - राजा श्रेणिक द्वारा आदेश प्राप्त कर नंद बहुत ही हर्षित और प्रसन्न हुआ। वह राजगृह नगर के बीचों-बीच होता हुआ निकला। वास्तुशास्त्र वेत्ता द्वारा चयनित भूमि भाग में उसने पुष्करिणी खुदवाना शुरू किया। इस प्रकार क्रमशः पुष्करिणी का खनन एवं निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। ___वह पुष्करिणी चार कोनों से युक्त थी। उसके किनारे समतल थे। क्रमशः वह ऊपर से नीचे संकरी होती हुई गहरी थी। शीतल जल युक्त थी। उसके जल पर कमल कंद, कमल पत्र एवं नाल छाए थे। वह अनेक प्रकार के कमलों के खिले हुए किंजल्क से युक्त थी। बहुत से मदोन्मत्त भ्रमरों, अनेक सारस, हंस आदि पक्षियों के जोड़ों द्वारा उच्च स्वर से किए जाते मधुर नाद से वह समुपेत थी। हर्षोत्पादक, दर्शनीय, सुंदर एवं आकर्षक थी। नंदा पुष्करिणी की सौंदर्य वृद्धि (१२) ..तए णं से णंदे मणियार सेट्ठी णंदाए पोक्खरिणीए चउदिसिं चत्तारि वणसंडे रोवावेइ। तए णं ते वणसंडा अणुपुव्वेणं सारक्खिजमाणा, संगोविजमाणा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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