SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (५४) तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्ता समाणी . णो आढाइ णो परिजाणाइ तुसिणीया संचिट्ठइ। भावार्थ - रानी धारिणी ने राजा श्रेणिक द्वारा पुनः पुनः कहने पर भी ध्यान नहीं दिया। ज्यों की त्यों बैठी रही। (५५) तए णं से सेणिए राया धारिणिं देविं सवह-सावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासीकिं णं तुमं देवाणुप्पिए! अहमेयस्स अट्ठस्स अणरिहे सवणयाए ता णं तुमं ममं अयमेयारूवं मणोमाणसियं दुक्खं रहस्सी करेसि? शब्दार्थ - सवह-सावियं - शपथशापित-सौगंध दिलाकर, अणरिहे - अयोग्य, सवणयाए- श्रवण करने के लिए, एयारूवं - इस प्रकार के, रहस्सी करेसि - छिपाती हो। भावार्थ - यह देखकर राजा श्रेणिक ने रानी को सौगंध दिलाकर कहा-देवानुप्रिये! क्या मैं तुम्हारी मन की पीड़ा को सुनने योग्य नहीं हूँ, जिससे तुम उस दुःख को मन में छिपा रही हो। दोहदपूर्ति की उत्कंठा | (५६) तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा सवह-साविया समाणी सेणियं रायं एवं वयासी - एवं खलु सामी! मम तस्स उरालस्स जाव महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउन्भूए - "धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव वेभारगिरि-पायमूलं आहिंडमाणीओ दोहलं विणिति, तं जइ णं अहमवि जाव दोहलं विणिज्जामि।" तए णं हं सामी। अयमेयारूवंसि अकाल-दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि ओलुग्गा जाव अदृज्झाणोवगया झियायामि। भावार्थ - राजा श्रेणिक द्वारा शपथपूर्वक इस प्रकार कहे जाने पर रानी धारिणी उनसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy