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पसरिसु
प्रसृत - फैले हुए, उण्णएसु
उन्नत-उच्च, सोहग्गमुवागएसु - सौन्दर्य प्राप्त, गेसु - पर्वतों में, एसु - नदों-बड़ी नदियों में, पवायतड प्रपात-तट, कडग
कटक
पर्वत के भाग, विमुक्केसु - विमुक्त निकले हुए, उज्झरेसु - निर्झर-झरने, तुरिय - त्वरिततेजी से, पहाविय प्रधावित - दौड़ते हुए, बहते हुए, पलोह प्रत्यागत- पत्थर आदि से टकराकर वापस लौटे हुए, फेणायुलं - फेनाकुल- झाग से व्याप्त, सकलुसं मैला, सज्ज सर्ज नामक वृक्ष, अज्जुण - अर्जुन नामक वृक्ष, कुडय कुटज नामक वृक्ष, कंदल - अंकुर, सिलिंघ - शिलीन्ध्र - भूमि को फोड़ कर निकले हुए छत्रक, उववण उपवन, मेहरसिय मेघ-रसित-बादलों के गरजने के शब्द, चिट्ठिय - स्थित, पमुक्क प्रमुक्त- खुले हुए, केकारवं
भाव, जणि
मयूर - ध्वनि - मोर की बोली, मुयंतेसु - छोड़ते हुए बोलते हुए, ऋतु, मय मद-उन्मत्त जनित-उत्पादित (किये हुए), तरुण सहयरि - युवासहचारिणी, पणच्चिए पनर्तित - नाचते हुए, कलंब - कदंब, गंधद्धणि- नासिका के लिए तृप्तिप्रद सुगंध, परहुय - रुयरिभिय-संकलेसु - कोयल की मधुर ध्वनि से व्याप्त, उद्दायंत शोभमान, थोवय
चक्रवाक, कारुण्ण
अवनत, झुके हुए,
पुष्प रस, लोल - चंचल,
करुणा जनक, विलविएसु - बोलते हुए, ओणय - तण - तृण घास, मण्डिए - मण्डित - सुशोभित, दद्दुर - मेंढक, पयंपिए - प्रजल्पित-बोलते हुए, संपिंडिय - एकत्रित, दरिय दर्प- मदयुक्त, महुयरि - मधुकरी-भ्रमरी, परिलिंत - अतीव लीन होते हुए, छप्पय षट्पद-भ्रमर, कुसुमासव परिसामिय- परिश्यामित - संपूर्णतः श्याम वर्ण युक्त, पणट्ठ प्रणष्ट- गायब, इंदाउह इन्द्रधनुष, चिंधपट्ट - ध्वजा वस्त्र, बलागपंति - बगुलों की कतार, विंदे - वृंद-समूह, कारण्डकपक्षी विशेष, चक्कवाय चक्रवाक-चकवा, कलहंस - राजहंस, उस्सुयकरे - उत्सुकता पैदा करने वाले, संपते आ जाने पर, पाउसंमिकाले - वर्षा ऋतु, पत्त
प्राप्त धारण किए हुए,
उर
शोभित, नूपुर- पैंजनी, मणिमेहर - मणियों से बनी हुई मेखला ( कर्धनी), भूसिय णासाणीसास वायवोज्झं नासिका से निकलते श्वास की हवा से हिलता हुआ, चक्खुहरं नेत्रप्रिय, वण्णफरिससंजुत्तं - उत्तम वर्ण एवं सुखद स्पर्श युक्त, हय अश्व, लाला लार, पेलवाइरेयं कोमल, अंतकम्मं
किनारों पर किया गया कलात्मक कार्य, फलिह स्फटिक, अंसुयं - वस्त्र, पवर परिहियाओ - सुंदर रूप में पहने हुए, दुगुल्ल विशेष की कोमल छाल से निकाले हुए तन्तुओं से बना वस्त्र, उत्तरिज्जाओ किए हुए, सव्वोउय समस्त ऋतुएँ, धूवियाओ - धूपित धूप द्वारा सुगंधित, सिरी- समाण
दुकूल वृक्ष उत्तरीय धारण
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प्रथम अध्ययन धारिणी देवी का दोहद
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