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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र शब्दार्थ - धण्णाओ - धन्या - भाग्यशालिनी, ताओ - वे, अम्मयाओ- माताएं, संपुण्णाओपुण्यशालिनी, कयत्थाओ - कृतार्थ, कयपुण्णाओ - कृत पुण्या, कयलक्खणाओ - कृतलक्षणासफल या सार्थक शारीरिक लक्षण युक्त, कयविहवाओ - कृत विभवा - सफल वैभव युक्त, सुलद्धे- समुपलब्ध, माणुस्सए मनुष्य के, जम्मजीवियफले जन्म एवं जीवन का फल, . मेहेसु - बादलों के, अब्भुग्गएसु - अभ्युद्गत- प्रादुर्भूत होने पर, अब्भुज्जएसु - अभ्युद्यतबरसने के लिए तैयार, अब्भुण्णएसु - अभ्युन्नत- विशेष रूप से उन्नत या ऊँचे, अब्भुट्ठिएसु अभ्युत्थित-बरसने को उद्यत सगज्जिएसु - सगर्जित-गर्जन सहित, सविज्जुएसु - सविद्युतबिजली युक्त, सफुसिएसु- जिनसे वर्षा की बूंदे टपक रही हों, सथणिएसु - घनघोर गर्जन करते हुए, धंत - ध्मात - अग्नि के संयोग से प्रतापित, धोय - निर्मल, रजतपत्र रूप्पपट्ट चाँदी का पत्र, अंक- स्फटिक रत्न, कुंद- श्वेत पुष्प विशेष, सालि - चावल, पिट्ठ - पिसे हुए, सम समान प्रभा - कांति युक्त, चिउर - पीले वर्ण का द्रव्य विशेष, चंपग चंपकपुष्प, सण पुष्प, सरसिय- सर्षप सरसों, पउमरय लाक्षारस-आर्द्र लाख, सरसरत्तकिंसुय - सरस रक्तकिंशुक - ताजे लाल पलाश - पुष्प, जासुमणजपा पुष्प, बंधु जीवग - बंधु जीवक के पुष्प, जाइहिंगुलय - उत्तम जाति के हिंगुलक, सरस कुंकुम - पानी में घोली हुई कुंकुम, उरब्भ - मेष मेंढा, सस - खरगोश, रुहिर - रुधिर, इंदगोवग - इन्द्रगोपक - वर्षाऋतु में होने वाला कीट विशेष, बरहिण - मयूर, णीलगुलिय नील गुटिका, सुग - तोता, चास - नीलकंठ पक्षी विशेष, पिच्छ - पंख, भिंगपत्त - भृंग पत्र - भ्रमर जाति विशेष के पंख, सासग सासक नामक वृक्ष, णीलुप्पलणियर - नीले कमलों का समूह, णवसिरीस कुसुम नव सरसों का पुष्प, णवसद्दल नया हरा घास, जच्वंजणउत्तम अंजन ( सुरमा), भेय - भेद, रिट्ठग श्याम वर्ण का रत्न विशेष, भमरावलिं - भंवरों की पंक्ति (समूह) गवलगुलिय - भैंस के सींग का सार भाग, फुरंत तेज हवा के कारण, परिसक्किरेसु - परिष्वष्कित पद्मरज-पराग, लक्खारस वायवस मारूय णिम्मलवर - अत्यंत निर्मल, पगलिय - प्रगलित - चलते हुए, पयंड - प्रचंड - अत्यंत प्रबल, मारुत, समाहय समाहत - संप्रेरित, समोत्थरंत - आच्छादित करते हुए, उवरि ऊपर, तुरियवासं - घनघोर वर्षा पवासिएसु - आरंभ करते हुए, धारापहकरणिवाय निर्वापित-बुझाया (शांत किया हुआ), मेइणितले जलधारा के गिरने से, णिव्वाविय पृथ्वी तल, पल्लविय पल्लवित-पत्रित, पायव - गणेसु वृक्ष समूह, वल्लि - बेल, ५८ - Jain Education International - - - - For Personal & Private Use Only - - - - - - · - स्फुरित ( चमकती हुई), गमन क्रिया में प्रवृत्त, - www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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