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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र शब्दार्थ - खलु - निश्चय ही, सामी - स्वामी, बावत्तरिं - बहत्तर, दिट्ठा - देखे गए, अरहतमायरो - अरिहंत की माताएं, चक्कवट्टिमायरो - चक्रवर्ती की माताएं, गन्भं - गर्भ, वक्कम-माणंसि - व्युत्क्रमित होने पर-गर्भ में आने पर, एएसिं तीसाए - इन तीस में से, इमे - ये, चउद्दस - चवदह, गय - हाथी, अभिसेय - अभिषेक, दाम - पुष्पमाला, दिणयरं - सूर्य, झयं - ध्वजा, कुंभं - पूर्णकलश, पउमसर - कमल युक्त सरोवर, रयणुच्चयरत्न-राशि, सिहिं - अग्नि।। भावार्थ - स्वामिन्! स्वप्नशास्त्र में बयालीस प्रकार के स्वप्न और तीस महास्वप्न-यों बहत्तर प्रकार के स्वप्न प्रतिपादित हुए हैं। स्वामिन्! तदनुसार अहँतों तथा चक्रवर्तियों की माताएं उनके गर्भ में आने पर इन तीस महास्वप्नों में से गज, वृषभ तथा सिंह आदि के चतुर्दश महा स्वप्न देखकर प्रतिबुद्ध होती है, जागती है। विवेचन - तीर्थंकर प्रायः देवलोक से च्यवन करके मनुष्यलोक में अवतरित होते हैं। कोई-कोई कभी रत्नप्रभा पृथ्वी से निकल कर भी जन्म लेते हैं। स्वर्ग से आकर जन्म लेने वाले तीर्थंकर की माता को स्वप्न में विमान दिखाई देता है और रत्नप्रभापृथ्वी से आकर जन्मने वाले तीर्थंकर की माता भवन देखती है। इसी कारण बारहवें स्वप्न में 'विमान अथवा भवन' ऐसा विकल्प बतलाया गया है। (३७) वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसि गम्भं वक्कम-माणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महासुभिणाणं अण्णयरे सत्त महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति। बलदेवमायरो वा बलदेवंसि गन्भं वक्कम-माणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णयरे चत्तारि महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति। मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गन्भं वक्कम-माणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अण्णयरं एगं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुझंति। ___ शब्दार्थ - एएसिं चउद्दसण्हं - इन चवदह में से, अण्णयरे - अन्यतर - किन्हीं, मंडलियमायरो - मांडलिक राजाओं की माताएं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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