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________________ प्रथम अध्ययन - श्रेणिक का उपस्थान शाला में आगमन ४६ + (३२) तए णं ते कोडंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ जाव हियया करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट “एवं देवो तहत्ति" आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति २ ता सेणियस्स रणो अंतियाओ पडिणिक्खमंति २ ता रायगिहस्स णयरस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव सुमिणपाढगगिहाणि तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सद्दावेंति।। शब्दार्थ - दसणहं - दस नाखून, आणाए - आज्ञा के, विणएणं - विनय पूर्वक, वयणं - वचन, पडिसुणेति - स्वीकार करते हैं, अंतियाओ - पास से, मज्झंमज्झेणं - बीचों बीच, सुमिणपाढग-गिहाणि - स्वप्न पाठकों के घर।। भावार्थ - राजा श्रेणिक द्वारा यों कहे जाने पर कौटुम्बिक पुरुषों ने अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक हाथ जोड़, सिर झुकाए राजा को नमस्कार किया और उनके आदेश को विनय पूर्वक स्वीकार किया। वैसा कर वे वहाँ से चले एवं राजगृह नगर के बीचोंबीच वहाँ पहुँचे, जहाँ स्वप्न-पाठकों के घर थे। तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रण्णो कोडंबियपुरिसेंहिं सद्दाविया समाणा हट्टतुट्ट जाव हियया ण्हाया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता अप्प-महग्याभरणा-लंकिय सरीरा हरियालिय-सिद्धत्थय-कयमुद्धाणा सएहिं सएहिं गिहेहितो पडिणिक्खमंति २ त्ता रायगिहस्स णयरस्स मज्झमज्झेणं जेणेव सेणियस्स रण्णो भवण-वडेंसग-दुवारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एगयओ मिलंति २ त्ता सेणियस्स रण्णो भवण-वडिंसग-दुवारेणं अणुपविसंति २ त्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति २ त्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, सेणिएणं रण्णा अच्चिय-वंदिय-पूइय-माणिय-सक्कारियसम्माणिया समाणा पत्तेयं २ पुव्वण्णत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति। शब्दार्थ - सद्दाविया समाणा - आमंत्रित किये जाने पर, पहाया - स्नान किया, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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