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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
कुल को प्रकाशित करने वाले अथवा कुलद्वीप-द्वीप के सदृश कुल के लिए आधारभूत, कुलवडिंसयं - कुलावतंसक-कुल के लिए मुकुंट के सदृश सर्वश्रेष्ठ, कित्तिकरं - कीर्तिकरयशस्वी बनाने वाले, कुल वित्तिकरं - कुल वृत्तिकर-कुल मर्यादा का पालन करने वाले, कुल णंदिकरं - कुल को आनन्दित करने वाले, धन-धान्यादि की वृद्धि करने वाले, कुल पायवं - कुल के लिए पादप-वृक्ष, कुल विवद्धणकरं - कुल विवर्धन कुल की विशेष वृद्धि करने वाले, सुकुमाल पाणिपायं - सुकोमल हाथ पैर युक्त, दारयं - दारक-पुत्र, पयाहिसि-उत्पन्न करोगी। ___ भावार्थ - राजा श्रेणिक ने रानी धारिणी को संबोधित कर कहा - हे देवानुप्रिय! जो स्वप्न तुमने देखा है, वह कल्याणप्रद, शिव, श्रेयस्कर, वैभव सूचक, मंगलमय एवं श्रीमयशोभायुक्त है। देवानुप्रिय! वह स्वप्न आरोग्य-उत्तम स्वास्थ्य, तुष्टि-परितोष, दीर्घायुष्य-लम्बा आयुष्य प्रदान करने वाला है। इससे इच्छित पदार्थ का लाभ होगा, पुत्र लाभ होगा, राज्य एवं भोगों का सुखलाभ होगा।
देवानुप्रिय! पूरे नव मास तथा साढे सात रात-दिन व्यतीत होने पर तुम पुत्र को जन्म दोगी, जो हमारे कुल को ध्वजा के सदृश उल्लसित करने वाला, कुल के लिये दीपक के सदृश प्रकाशक, पर्वत के तुल्य आधारभूत, मुकुट के समान सर्वश्रेष्ठ-सर्वोच्च, तिलक के सदृश शोभामय, कुल के लिए यशस्कर, मर्यादा-परिपालक, आनन्द एवं वृद्धिकर तथा सुकोमल हाथ पैर युक्त-सर्वांग सुन्दर होगा।
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... से वि य णं दारए उम्मुक्क-बालभावे विण्णाय परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कंते वित्थिण्णविपुलबलवाहणे रज्जवई राया भविस्सइ। तं उराले णं तुमे देवी! सुमिणे दिढे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाणकारए णं तुमे देवी! सुमिणे दिलै त्ति कटु भुज्जो-भुजो अणुवूहेइ।
शब्दार्थ - उम्मुक्कबालभावे - उन्मुक्त बाल भाव-बाल्यावस्था पार करके, विण्णाय - विज्ञात-भली भाँति जाना हुआ, परिणयमेत्ते - परिणतमात्रा-विद्या, कला आदि में परिपक्वता, जोव्वणग - यौवन-युवावस्था, विक्कंते - विक्रान्त-पराक्रमी, वित्थिण्ण - विस्तीर्ण-विस्तार युक्त, रज्जवई - राज्यपति-अनेक राज्यों का अधिपति, भुज्जो-भुज्जो - भूयो-भूयः-बार बार, अणुव्हेइ - प्रशंसा करता है।
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