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प्रथम अध्ययन - स्वप्नदर्शन
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लट्ठमट्ठसंठिय-खंभुग्गय-पवरवर-सालभंजिय उजलमणिकणग-रयण-थूभियविंड कजालद्ध-चंदणिजूह-कंतर-कणयालि-चंदसालिया-विभत्तिकलिए सरसच्छ धाऊवल-वण्णरइए बाहिरओ दूमियघट्ठमढे अभिंतरओ पसत्तसु विलिहिय चित्तकम्मे णाणाविह-पंचवण्ण-मणिरयण कोट्टिमतले पउमलयाफुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइ-उल्लोयचित्तियतले चं(वं)दणवरकणगकलस-सु(वि)णिम्मियपडिपूजिय-सरस-पउम-सोहंतदारभाए पयरग्ग लंबंत-मणिमुत्तदामसुविरइय-दारसोहे सुगंधवर कुसुम-मउयपम्हल-सयणोवयारे-मणहिययणिव्वुइकरे कप्पूर-लवंग-मलयचंदण-कालागरू-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्कधूवडज्झंत-सुरभिमघमघंत-गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधिए गंधवट्टिभूए मणिकिरण पणासियंधयारे किं बहुणा? जुइगुणेहिं सुरवरविमाण-वेलं वरघरए तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सांलिंगणवट्टिए उभओबिब्बोयणे दुहओ उण्णए मज्झे णय-गंभीरे गंगापुलिणवालुयाउद्दालसालिसए उयचियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छण्णे अत्थरयमलय-णवतयकुसत्त-लिंब-सीह केसर पच्चुत्थए सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणगरुयबूर-णवणीयतुल्लफासे पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी
ओहीरमाणी एणं महं सत्तुस्सेहं रययकूडसण्णिहं णहयलंसि सोमं सोमागारं लीलायंतं जंभायमाणं मुहमतिगयं गयं पासित्ता णं पडिबुद्धा। .
शब्दार्थ - अण्णया - अन्यदा-दूसरे समय, कयावि - कदापि, तंसि - उसमें, तारिसगंसि- उस प्रकार के, छक्कट्ठग - षट्काष्ठक-काठ के छह छह खंड़ों से युक्त, लट्ठ - लष्ठ-मनोहर-सुन्दर मट्ट - मृष्ट-घिस कर चिकने किये हुए, संठिय - संस्थित-यथा स्थान भली भांति स्थापित, उग्गय - उद्गत्-बाहर निकली हुई, पवरवर - अति उत्तम, सालभंजिय - शालभंजिका-पुतलियाँ, कणग - स्वर्ण, थूभिय - स्थूपिका-छत्राकार छोटे-छोटे शिखर, विडगछज्जे, जाल - छिद्रयुक्त-विशेष प्रकार के झरोखे, अद्धचंद - अर्धचन्द्राकार-आधे चांद के आकार की सीढ़ियाँ, अंतर - जलनिर्गम द्वार-पानी बाहर जाने की नालियाँ, चंदसालिय - चन्द्रशालिका-भवन पर भवन, विभत्ति - विभागशः रचना, कलिय- कलित-कलायुक्त-सुन्दर, सरस - अतिशय रंगयुक्त, अच्छ - स्वच्छ-साफ, उवल - उपल-दग्ध पाषाण - पत्थरों को
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