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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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यावि होत्था। जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइयं चारित्तं पडिवण्णे तं. समयं च णं मल्लिस्स अरहओ माणुसधम्माओ उत्तरिए मणपजवणाणे समुप्पण्णे। - शब्दार्थ - णिलुक्के - निलीन-शांत या बंद।
भावार्थ - जिस समय अरहंत मल्ली ने चारित्र स्वीकार किया उस समय देवों और मनुष्यों का कोलाहल और उन द्वारा बजाए जाने वाले, गाए जाने वाले वाद्यों, गीतों की ध्वनि, शक्रेन्द्र के आदेश से बंद या शांत हो गई।
जिस समय अरहंत मल्ली ने सामायिक चारित्र स्वीकार किया, उसी समय उनको. मानुष धर्मोत्तर-अव्रती मनुष्यों को न होने वाला या लोकोत्तर मनःपर्याय ज्ञान उत्पन्न हुआ।
(१८२) मल्ली णं अरहा जे से हेमंताणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे पोससुद्धे तस्स णं पोससुद्धस्स एक्कारसी पक्खेणं पुव्वण्ह कालसमयंसि अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं अस्सिणीहिं णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं तिहिं इत्थीसएहिं अन्भिंतरियाए परिसाए . तिहिं पुरिससएहिं बाहिरियाए परिसाए सद्धिं मुंडे भवित्ता पव्वइए। ,
भावार्थ - अरहंत मल्ली ने हेमंत ऋतु के दूसरे मास में (पौष में), चतुर्थ पक्ष में (शुक्ल पक्ष में), पौष शुक्ला एकादशी के पूर्वार्द्ध काल में, पानी रहित तेले की तपस्या कर, जब अश्विनी नक्षत्र का योग था, तीन सौ आभ्यंतर परिषद् की स्त्रियों तथा तीन सौ बाह्य परिषद् के पुरुषों के साथ मुण्डित होकर प्रव्रज्या स्वीकार की।
(१८३) मल्लिं अरहं इमे अट्ठ णायकुमारा अणुपव्वइंसु तंजहागाथा- णंदे य णंदिमित्ते सुमित्त बलमित्त भाणुमित्ते य।
___ अमरवइ अमरसेणे महसेणे चेव अट्ठमए॥१॥ भावार्थ - मल्ली अरहंत का अनुसरण करते हुए ज्ञात वंशीय-इक्ष्वाकु कुलोत्पत्र आठ राजकुमारों ने दीक्षा ली। इनके नाम इस प्रकार हैं -
गाथा - नंद, नन्दिमित्र, सुमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, अमरपति, अमरसेन तथा महासेन॥१॥
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