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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(७२) तए णं कुंभए राया तेसिं संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ २ त्ता मल्लिं विदेहरायवरकण्णं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता तं दिव्वं कुंडल जुयलं मल्लीए विदेहरायवरकण्णगाए - पिणद्धेइ, पिणवेत्ता पडिविसजेइ।
शब्दार्थ - पडिच्छइ - ग्रहण करता है, पिणेद्धत्ता - पहनाता है।
भावार्थ - विदेह राजा कुंभ ने उन समुद्री व्यापारियों द्वारा दी गई भेंट और कुंडल स्वीकार किए। फिर अपनी राजकुमारी मल्ली को बुलाया। बुलाकर उसे कुंडल पहना दिए और वापस भेज दिया।
(७३) तए णं से कुंभए राया ते अरहण्णगपामोक्खे जाव वाणियगे विपुलेणं असण वत्थगंधमल्लालंकारेणं जाव उस्सुक्कं वियरइ २ ता रायमग्गमोगाढेइ आवासे वियरइ २ त्ता पडिविसज्जेइ।
शब्दार्थ - उस्सुक्कं वियरइ - शुल्क माफ कर देता है, रायमग्गमोगाढेइ - राजमार्ग पर स्थित।
भावार्थ - राजा कुंभ ने अर्हन्नक आदि व्यापारियों का बहुत प्रकार के अशन-पान-खाद्यस्वाद्य तथा वस्त्र सुगंधित पदार्थ, माला एवं आभूषण आदि द्वारा सत्कार किया। उनका शुल्क माफ कर दिया। उन्हें राजमार्ग के समीपवर्ती आवास स्थान दिया तथा अपने यहाँ से विदा किया।
(७४) तए णं अरहण्णगसंजत्तगा जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता भंडववहरणं करेंति २ ता पडिभंडं गेण्हंति २ ता सगडी० भरेंति जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता पोयवहणं सजेंति २ ता भंडं संकामेंति दक्खिणाणु० जेणेव चंपापोयट्ठाणे तेणेव पोयं लंबेंति २ ता सगडी० सज्जेंति २ ता तं गणिमं ४ सगडी० संकामेंति जाव महत्थं पाहुडं दिव्वं च
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