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________________ प्रथम अध्ययन - आर्य सुधर्मा ११ सम्पदा-शारीरिक सौष्ठव, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, विनय, बह्मचर्य आदि उत्तमोत्तम गुणों से युक्त, विराट व्यक्तित्व के धनी थे, पाँच सौ साधुओं के साथ विभिन्न स्थानों में विचरण करते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए, चम्पा नगरी में पधारे। वहाँ पूर्णभद्र नामक चैत्य में समुचित, निरवद्य स्थान में रुके। _ विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ग्यारह गणधर-प्रमुख शिष्य थे। वे सभी ब्राह्मण वंशोत्पन्न थे। वेद, वेदांग, स्मृति, पुराण, दर्शन, धर्मशास्त्र आदि के वे प्रौढ़ विद्वान् थे। सैकड़ों शिष्यों के परिवार से युक्त थे। भगवान् महावीर के त्याग-तपोमय, साधनामय, आध्यात्मिक ज्योतिर्मय व्यक्तित्व से, उद्बोधन से प्रभावित होकर वे उनके पास श्रमण-धर्म में दीक्षित हो गए। . भगवान् महावीर स्वामी के नौ गण थे। जो इन ग्यारह गणधरों द्वारा अनुशासित थे। नौ गणधरों का भगवान् महावीर स्वामी के जीवनकाल में ही निर्वाण हो गया। प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम तथा पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी विद्यमान रहे। भगवान् महावीर स्वामी का जिस दिन पावापुरी में निर्वाण हुआ, उसी दिन गणधर गौतमस्वामी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। - केवलज्ञानी अपने स्वाश्रित, स्वतंत्र, स्वतः प्रमाण केवलज्ञान-सर्वज्ञत्व के कारण साधु संघ के अधिनायक पद पर आसीन नहीं होते, ऐसी परम्परा है। अतः भगवान् महावीर स्वामी के पाट पर गौतम स्वामी नहीं विराजे। संघाधिनायक का उत्तरदायित्व श्री सुधर्मा स्वामी ने स्वीकार किया। वे भगवान् महावीर स्वामी के पाट पर विराजे। . श्री सुधर्मा स्वामी के नाम से पूर्व जो आर्य शब्द का प्रयोग दृष्टि गोचर होता है वह उनके . निर्मल, उज्ज्वल, सात्त्विक, सौम्य तथा विपुल आत्म-शक्ति-सम्पन्न व्यक्तित्व का सूचक है। (५) तए णं चंपाए णयरीए परिसा णिग्गया। कोणिओ णिग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा जामेव दिसिं पाउन्भया तामेव दिसिं पडिगया। ... शब्दार्थ - परिसा - परिषद्-जनसमूह, णिग्गया - निर्गत हुआ-आया, धम्मो - धर्मोपदेश, कहिओ - कहा गया-दिया गया, जामेव दिसिं - जिस दिशा से, पाउन्भूया - प्रादुर्भूत हुआ, आया, तामेव दिसिं - उसी दिशा में, पडिगया - प्रतिगत हुआ-लौट गया। भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी के चम्पा में पधारने पर लोग उन्हें वन्दन करने, उनका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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