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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - कोसल नरेश प्रतिबुद्धि
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(४१) तए णं सा पउमावई देवी कल्लं० कोडुंबियपुरिसे. सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सागेवं णयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसियसम्मज्जिओवलित्तं जावं पच्चप्पिणंति।
भावार्थ - तत्पश्चात् रानी पद्मावती ने दूसरे दिन सवेरे सेवकों को बुलाया और कहा - शीघ्र ही तुम लोग साकेत नगर में भीतर एवं बाहर पानी का छिड़काव कर, सफाई कराओ तथा लिपाई-पुताई द्वारा उसे सुसज्जित कराओ। यावत् सेवकों ने रानी के आदेशानुसार यह सब कर उसे सूचित किया।
(४२) तए णं सा पउमावई देवी दोच्चंपि कोडुंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव (उवट्ठवेह, तए णं तेवि ततेव) उवट्ठति। तए णं सा पउमावई अंतो अंतेउरंसि बहाया जाव धम्मियं जाणं दुरूढा।
शब्दार्थ - लहुकरणजुत्तं - तेज चलने वाले बैल।
भावार्थ - रानी पद्मावती ने फिर सेवकों को बुलाया और उनसे कहा - शीघ्रगामी वृषभों से युक्त रथ तैयार कराओ, यावत् तैयार कराकर यहाँ उपस्थित करो। सेवक. आज्ञानुरूप रथ ले आए। पद्मावती देवी ने अन्तःपुर में स्नान किया। यावत् नागपूजोत्सव-लौकिक धर्म कार्य हेतु लाए गए रथ पर आरूढ हुई।
(४३) तए णं सा पउमावई णियगपरिवाल संपरिवुडा सागेयं णयरं मज्झंमज्झेणं णिजइ २ त्ता जेणेव पुक्खरणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोक्खरणिं
ओगाहइ २ त्ता जलमज्जणं जाव परमसुइभूया उल्लपडसाडया जाई तत्थ उप्पलाई जाव गेण्हइ २ त्ता जेणेव णागघरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - तदनंतर रानी पद्मावती अपने परिवार से घिरी हुई साकेत नगर के बीच से निकली और पुष्करिणी पर आई। अवगाहन-प्रवेश किया, जलक्रीड़ा की, स्नान किया, मंगलोपचार
सलामडा , साकत नगर काबीचचरी
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