SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५६ सद्दावेत्ता एवं वयासी भविस्सइ । तं तुब्भे मालागारे सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वयह। भावार्थ राजा प्रतिबुद्धि ने रानी पद्मावती के इस कथन को स्वीकार किया। रानीं पद्मावती राजा की अनुज्ञा प्राप्त कर बहुत परितुष्ट हुई। उसने सेवकों को बुलाया और कहा देवानुप्रियो ! कल मेरी ओर से नागपूजा का आयोजन है । तुम मालाकारों को बुलाओ और उन्हें ऐसा कहो । ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र एवं खलु देवाणुप्पिया! मम कल्लं णागजण्णए - (४०) एवं खलु पउमावईए देवीए कल्लं णागजण्णए भविस्सइ । तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया! जलथलय० दसद्धवण्णं मल्लं णागघरयंसि साहरह एगं च णं महं सिरिदामगंड उवणेह । तए णं जलथलय० दसद्ध वण्णेणं मल्लेणं णाणाविहभत्तिसुविरइयं हंसमियमयूर - कोंचसारसचक्कवायमयण साल - कोइल - कुलोववेयं ईहामिय जाव भत्तिचित्तं महग्घं महरिहं विउलं पुप्फमंडवं विरहए । तस्स णं बहुमज्झदेसभाए एगं महं सिरिदामगंडं जाव गंधद्धणिं मुयंतं उल्लोयंसि ओलंबेह २ त्ता पउमावई देवि पडिवालेमाणा २ चिट्ठह । तए णं ते कोडुंबिया जाव चिट्ठति । Jain Education International भावार्थ - सेवकों ने मालाकारों से कहा रानी पद्मावती की ओर से कल प्रातः काल नाग पूजोत्सव आयोजित होगा। देवानुप्रियो ! तुम लोग जल में, स्थल में उत्पन्न होने वाले, देदीप्यमान, पाँच वर्णों से युक्त फूलों की मालाएँ नागदेवायतन में लाओ। एक बहुत बड़ा शोभामय, पुष्पमालाओं का समूह वहाँ स्थापित करो। फिर उक्तविध पुष्पमालाओं द्वारा तरहतरह की संरचनाएँ करो। उनमें हंस, मृग, मयूर, क्रौंच, सारस, चक्रवाक, मैना, कोयल आदि पक्षियों के तथा भेड़िया आदि पशुओं के यावत् विविध प्रकार की आकृतियों से युक्त, बहुमूल्य (उत्तम) विशाल, पुष्प मंडप की रचना करो। उसके बीचोंबीच अत्यधिक मधुर गंध छोड़ते हुए, पूर्व में बतलाए गए श्रीदामकाण्ड को ऊँचा लटकाओ। ऐसा कर, रानी पद्मावती की प्रतीक्षा करो। सेवकों ने आज्ञानुसार सब संपादित किया, यावत् वे रानी की प्रतीक्षा करते हुए वहाँ स्थित हुए। For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy