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रोहिणी नामक सातवां अध्ययन
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भावार्थ रोहिणिका के साथ भी वैसा ही वार्तालाप हुआ । अन्तर यह है, रोहिणिका बोली- 'तात! आप बहुत से गाड़े - गाड़िया दें, जिनमें डालकर मैं उन पांच धान के कणों को आपके पास ला सकूं।' धन्य सार्थवाह ने रोहिणिका से कहा- 'बेटी ! उन पांच धान के दानों को क्या गाड़ी - गाड़ों द्वारा लौटाओगी?”
रोहिणिका बोली- 'तात! पांच वर्ष पूर्व आपने मित्र, स्वजन, संबंधीजन आदि के समक्ष हम चारों पुत्र वधुओं को पांच-पांच दाने दिए यावत् इन दानों को दिए जाने में कोई विशेष बात है, यह सोचकर अपने पीहर में इनकी अलग खेती करवाई, जिसके परिणाम स्वरूप ये क्रमशः बढ़ते-बढ़ते सैकड़ों कुंभ प्रमाण हो गए हैं। इसीलिए मैं उन पांच दानों को गाड़ी -गाड़ों में लदाकर लौटाऊँगी।
परिणाम
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(२६)
तए णं से धण्णे सत्थवाहे रोहिणीयाए सुबहुयं सगडीसागडं दलयइ । तए णं रोहिणी सुबहू सगडीसागडं गहाय जेणेव सए कुलघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोट्ठागारे विहाडे २ त्ता पल्ले उब्भिंदइ २ त्ता सगडीसागडं भरेइ २ ता रायगिहं णगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ । तए णं रायगिहे णयरे सिंघाडग जाव बहुजणो अण्णमण्णं एवमाइक्खड़ ४ धणे णं देवाणुप्पिया! धण्णे सत्थवाहे जस्स णं रोहिणीया सुण्हा जीए ण पंच सालिअक्खए सगडसागडिएणं णिज्जाए ।
शब्दार्थ - उब्भिंदइ - मुद्रा रहित करना - सील आदि हटाना ।
भावार्थ धन्य सार्थवाह ने रोहिणिका को बहुत से गाड़ी - गाड़े दिए । रोहिणी उन्हें लेकर अपने पीहर आई। वहाँ कोष्ठागार को खुलवाया । तदन्तरवर्त्ती उस भण्डार, जिसमें शालिधान रखा था, मुद्रा रहित करवाया - सील हटवाई। शालिधान को गाड़ी - गाड़ों पर लदवाया । राजगृह नगर के बीचों-बीच होती हुई, अपने घर धन्य सार्थवाह के पास आई। यह देखकर राजगृह नगर के तिराहे, चौराहे - चौक आदि भिन्न-भिन्न स्थानों में लोग आपस में यों बात करने लगे- “धन्य सार्थवाह वास्तव में धन्य है, जिसकी रोहिणिका जैसी पुत्रवधू है, जो पांच शालिधान के दानों को गाड़े- गाड़ियों में भरवा कर लौटा रही है । "
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