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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सोचा। इसका कोई अवश्य ही विशेष कारण होना चाहिए। यह विचार कर मैंने उन पाँच दानों को शुद्ध वस्त्र में बांधा, रत्न करंडिका में रखा एवं उसकी देखभाल करती रही।
तात! इस कारण ये वे ही पांच शालिधान के दाने हैं, दूसरे नहीं हैं।
____ तए णं से धण्णे रक्खियाए अंतिए एयममु सोच्चा हट्टतुढे तस्स कुलघरस्स हिरण्णस्स य कंस-दूस-विपुल-धण जाव सावएजस्स य भंडागारिणिं ठवेइ।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह रक्षिका का यह कथन सुनकर बहुत ही हर्षित और परितुष्ट हुआ। उसने अपने परिवार के चांदी, कास्य, वस्त्र यावत् स्वर्ण इत्यादि 'विपुल' धन की भंडागारिणी का-निधान स्वामिनी का उसे उत्तरदायित्व सौंपा।
एवामेव समणाउसो! जाव पंच य से महव्वयाइं रक्खियाई भवंति से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं ४ अच्चणिजे जाव जहा सा रक्खिया। ___भावार्थ - आयुष्मान् श्रमणो! यावत् जो साधु-साध्वी अपने पांच महाव्रतों की रक्षा करते हैं, भली भांति पालन करते हैं, वे इस भव में बहुत से साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं द्वारा अर्चनीय-पूजनीय, सम्मानीय होते हैं यावत् जिस प्रकार रक्षिका अपने श्वसुर द्वारा सम्मानित हुई।
(२८) रोहिणियाणि एवं चेव णवरं तुब्भे ताओ! मम सुबहुयं सगडीसागडं दलाहि जेणं अहं तुम्भं ते पंच सालिअक्खए पडिणिजाएमि। तए णं से धण्णे सत्थवाहे रोहिणिं एवं वयासी-कहं णं तुमं मम पुत्ता! ते पंच सालिअक्खए सगडसागडेणं णिजाइस्ससि? तए णं सा रोहिणी धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-एवं खलु ताओ! इओ तुन्भे पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त जाव बहवे कुंभसया जाया तेणेव कमेणं एवं खलु ताओ! तुन्भे ते पंच सालिअक्खए सगडीसागडेणं णिजाएमि।
शब्दार्थ - सगडसागडेणं - गाड़ी-गाडे।
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