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________________ रोहिणी नामक सातवां अध्ययन - परिणाम ३२५. परिणाम (१६) तए णं तस्स धण्णस्स पंचमयंसि संवच्छरंसि परिणममाणंसि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-एवं खलु मम इओ अईए पंचमे संवच्छरे चउण्हं सुण्हाणं परिक्खणट्ठयाए ते पंच पंच सालिअक्खया हत्थे दिण्णा, तं सेयं खलु मम कल्लं जाव जलंते पंच सालिअक्खए परिजाइत्तए जाव जाणामि ताव काए किह सारक्खिया वा संगोविया वा संवड्डिया जाव त्तिकट्ट एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जाव जलते विपुलं असणं ४ मित्तणाइणियग० चउण्हं य सुण्हाणं कुलघरवग्गं जाव सम्माणित्ता तस्सेव मित्त० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ जेटं उज्झियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी। . शब्दार्थ - संवच्छरंसि - संवत्सर-वर्ष, परिणममाणंसि - परिपूर्ण होने पर, अईए - अतीत-बीता हुआ, परिजाइत्तए - प्रतियाचित करूँ-माँगू, काए - किसके द्वारा। - भावार्थ - तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने पांचवां वर्ष पूरा होने पर एक समय मध्यरात्रि में यों विचार किया-मैंने अब से पांच वर्ष पूर्व अपनी चारों पुत्रवधुओं की परीक्षा करने के लिए पांच शालिधान के दाने उनके हाथ में दिए थे। अच्छा हो, जब प्रातः काल सूरज चमकने लगे, मैं उनसे धान के वे दाने माँगू यावत् यह जान सकूँ कि किसने किस-किस प्रकार से उनका संरक्षण, संगोपन, संवर्द्धन किया है। ऐसा संप्रेक्षण-गहराई से चिंतन कर अगले दिन प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात् विपुल अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य तैयार करवाया। मित्रों स्वजनों एवं अपने सभी सुहृदजनों तथा चारों वधुओं के पीहर के व्यक्तियों को बुलाया यावत् अशन-पान आदि द्वारा उनका सम्मान किया और उन समागतजनों तथा पुत्रवधुओं के पीहर के लोगों के समक्ष अपनी ज्येष्ठा पुत्रवधू उज्झिका को बुलाया एवं उसे कहा। (१७) एवं खलु अहं पुत्ता! इओ अईए पंचमंसि संवच्छरंसि इमस्स मित्त० चउण्ह य सुण्हाणं. कुलघरवग्गस्स य पुरओ तव हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयामि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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