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________________ रोहिणी नामक सातवां अध्ययन भविष्य - चिंता : परीक्षण का उपक्रम भावार्थ तब सेवकों ने रोहिणिका के आदेश को स्वीकार किया । तदनुसार उन्होंने धान पांच दानों को लिया और उनको यथावत् रूप में सावधानी पूर्वक रख लिया । वर्षा ऋतु के आते ही अत्यधिक वृष्टि होने पर एक छोटी सी क्यारी साफ कर तैयार की। धान के पांच दानों को बोया। दो बार-तीन बार उनको उखाड़ कर अन्य स्थान में रोपा । उनके चारों ओर बाड़ बना दी। अनुक्रम से संरक्षण, संगोपन और संवर्द्धन करते रहे। (११) तए णं ते साली अक्खए अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविजमाणा संवडिजमाणा साली जाया किण्हा किण्होभासा जाव णिउरंबभूया पासाईया ४, तए णं ते साली पत्तिया वत्तिया गब्भिया पसूया आगयगंधा खीराइया बद्धफला पक्का परियागया सल्लइया पत्तइया हरियपव्वकंडा जाया यावि होत्था । शब्दार्थ - णिउरंबभूया - सघन - गहरे, पत्तिया - पत्रित पत्ते निकले, वत्तिया - वृन्तयुक्त हुए, गब्भिया गर्भित - अन्तर्मंजरी युक्त, पसूया प्रसूत - बहिर्मंजरी युक्त, आगयगंधा सुरभियुक्त, खीराइया दुग्धयुक्त, बद्धफला दुग्ध से कण रूप में परिवर्तित, पक्का परिपक्व, परियागया अंग-प्रत्यंग - परिपक्व, सल्लइया ऊपर के शुष्क हुए आवरण से युक्त, पत्तइया - पत्रकित - सूखे पत्तों के गिर जाने से अल्प पत्र युक्त । भावार्थ - फिर वे धान के कण अनुक्रम से सुरक्षित, संगोपित, संवर्द्धित किए जाते हुए, नील वर्ण और आभायुक्त, बहुल सघन, देखने में बहुत सुंदर, प्रीतिकर तथा आकर्षक धान के पौधे के रूप में परिणत हो गए । - - Jain Education International - ३२१ - वे क्रमशः पत्र, वृन्त युक्त हुए। वे अंतर्मंजरी बहिर्मंजरी युक्त हुए । सुरभित, सुगंधित होते हुए 'धान के तरलरूप- दुग्ध युक्त हुए। तदनंतर वह 'दूध' कणबद्ध हुआ । उसने परिपक्व फल का आकार प्राप्त किया। उसका ऊपरी आवरण भूसे में परिवर्तित हुआ और उसका पर्वकाण्ड पक गया। (१२) For Personal & Private Use Only - तणं ते कोडुंबिया ते साली पत्तिए जाव सल्लइएपत्तइए जाणित्ता तिक्खेहिं णवपज्जणएहिं असियएहिं लुणंति २ त्ता करयल मलिए करेंति २ त्ता पुणंति । तत्थ णं चोक्खाणं सूइयाणं अखंडाणं अफोडियाणं छडछडापूयाणं सालीणं मागहए पत्थए जाए। www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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