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शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - मंत्रियों सहित राजा शैलक की प्रव्रज्या - २६३
जाना रहता था, ऐसे पृथ्वी शिलापट्टक पर यावत् प्रतिलेखना आदि कर संलेखना पूर्वक पादोपगमन अनशन स्वीकार किया।
इस प्रकार थावच्चापुत्र ने बहुत वर्ष पर्यंत श्रामण्य पर्याय-साधु जीवन का पालन कर एक मास की संलेखना पूर्वक साठ भक्तों का छेदन कर यावत् केवलज्ञान, केवल दर्शन प्राप्त किया। तत्पश्चात् उसने सिद्धत्व प्राप्त किया, समस्त दुःखों का अंत किया।
मंत्रियों सहित राजा शैलक की प्रव्रज्या
तए णं से सुए अण्णया कयाइं जेणेव सेलगपुरे णगरे जेणेव सुभूमिभागे उजाणे समोसरणं परिसा णिग्गया सेलओ णिगच्छइ धम्म सोच्चा जं णवरं देवाणुप्पिया! पंथगपामोक्खाई पंच मंतिसयाई आपुच्छामि मंडुयं च कुमारं रज्जे ठावेमि तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया!
भावार्थ - फिर एक बार शुक अनगार शैलकपुर नगर में आए। वहाँ सूभूमिभाग नामक उद्यान में समवसृत हुए, ठहरे। धर्मश्रवण हेतु परिषद आयी। राजा शैलक भी आया। धर्म देशना का श्रवण किया। धर्म देशना के अन्य प्रसंगों से इस प्रसंग में यह विशेषता है कि राजा. शैलक ने मुनि शुक से कहा-'देवानुप्रिय! अपने पंथक आदि पांच सौ मंत्रियों से पूछ लूं, उनसे परामर्श कर लूं, राजकुमार मण्डुक को राज्य में स्थापित कर दूं, उसे राज्य का उत्तरदायित्व सौंप दूं। तत्पश्चात् मैं गार्हस्थ्य का त्याग कर आपके पास मुंडित, प्रव्रजित होऊँगा। शुक बोले - देवानुप्रिय! जिससे तुम्हारी आत्मा को सुख मिले, वैसा ही करो।
(५४) तए णं से सेलए राया सेलगपुरं णगरं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता सीहासणं सण्णिसण्णे। तए णं से सेलए राया पंथग पामोक्खे पंच मंतिसए सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! मए सुयस्स अंतिए धम्मे णिसंते से वि य मे
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