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________________ २६० ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ___ शब्दार्थ - पामोक्ख - प्रमुख, राई - राजा, पजुण्ण - प्रद्युम्न, अद्भुट्ठाणं - साढे तीन, संब - शाम्ब, दुईत - दुर्दान्त, रुप्पिणी - रुक्मिणी, ईसर - ईश्वर-ऐश्वर्यशाली एवं प्रभावशाली पुरुष, तलवर - राजसम्मानित विशिष्ट नागरिक। ___ भावार्थ - द्वारका नगरी में राजा कृष्ण वासुदेव निवास करते थे। वे समुद्रविजय आदि दस दशा), बलदेव आदि पाँच महावीरों, उग्रसेन आदि सोलह हजार राजाओं, प्रद्युम्न आदि साढे तीन करोड़ कुमारों, शाम्ब आदि साठ हजार दुर्दान्त साहसिक-योद्धाओं, वीरसेन आदि इक्कीस हजार वीरों, महासेन आदि छप्पन हजार बलवान पुरुषों, रुक्मिणी आदि बत्तीस हजार महिलाओं-रानियों, अनङ्गसेना आदि अनेक सहस्र गणिकाओं, अन्य बहुत से ऐश्वर्यशाली पुरुषों, राज्य सम्मानित विशिष्टजनों, यावत् सार्थवाहों का तथा उत्तर दिशा में वैताढ्य एवं अन्य तीन दिशाओं में लवण समुद्र तक दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र का तथा द्वारका नगरी का आधिपत्य करते थे, यावत् पालन करते थे। विवेचन - उपर्युक्त सूत्र में रुक्मिणी प्रमुख बत्तीस हजार रानियाँ बताई है। वह कृष्ण महाराज के अधीनस्थ सोलह हजार राजाओं की एक एक पुत्री तथा एक-एक देश की सबसे सुन्दर कन्या, इस प्रकार प्रत्येक देश की दो-दो की गिनती से बत्तीस हजार समझना चाहिए। अन्तकृत दशा सूत्र अध्ययन एक में श्री कृष्ण महाराज की सोलह हजार रानियाँ बताई गई है। वहाँ पर मात्र उन सोलह हजार राजाओं की कन्याओं की ही गिनती की गई है। अतः दोनों सूत्रों में अलग-अलग अपेक्षा से वर्णन होने से परस्पर विरोध नहीं समझना चाहिए। ___ बलदेव वासुदेव आदि के लिए भी पूज्य दस पुरुषों को दशाह कहा गया है जिनमें समुद्रविजयजी तो त्रैलोक्य पूज्य भगवान् अरिष्टनेमि स्वामी के पिता थे। __अमुक प्रकार का शौर्य प्रदर्शित करने पर जिस प्रकार आज-कल सैनिकों को वीर चक्र, महावीर चक्र, परमवीर चक्र आदि प्रदान किये जाते हैं, वैसे ही वीर, महावीर आदि के विभाग श्री कृष्ण महाराज के समय में होने की संभावना हैं। वसुदेव की देवकी रानी के कृष्ण महाराज एवं रोहिणी से बलदेव का जन्म हुआ था। प्रद्युम्नकुमार रुक्मिणि के अंगजात थे तथा शाम्ब की माता का नाम जाम्बवती था। सेना की टुकड़ियाँ रेजिमेन्ट्स' को 'बलवग्ग-बलवर्ग' कहा जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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