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________________ शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - श्रीकृष्ण वासुदेव २५६ विवेचन - यद्यपि द्वारवती नगरी, रैवतक गिरि और अगले सूत्रों में वर्णित नन्दनवन आदि सूत्र रचना के काल में भी विद्यमान थे, तथापि भूतकाल में जिस पदार्थ की जो स्थिति-अवस्था अथवा पर्याय थी वह वर्तमान काल में नहीं रहती। यों तो समय-समय में पर्याय का परिवर्तन होता रहता है किन्तु दीर्घकाल के पश्चात् तो इतना बड़ा परिवर्तन हो जाता है कि वह पदार्थ नवीन-सा प्रतीत होने लगता है। भगवान् नेमिनाथ के समय की द्वारवती और भगवान् महावीर के और उनके भी पश्चात् की द्वारवती में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया। इसी दृष्टिकोण से सूत्रों में इन स्थानों के लिए भूतकाल की क्रिया का प्रयोग किया गया है। (४) तस्स णं रेवयगस्स अदूरसामंते एत्थ णं णंदणवणे णामं उजाणे होत्था . सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे रम्मे णंदण-वणप्पगासे पासाईए ४। तस्स णं उजाणस्स बहुमज्झदेसभाए सुरप्पिए णामं जक्खाययणे होत्था दिव्वे वण्णओ। भावार्थ - रैवतक पर्वत से न बहुत दूर तथा न बहुत निकट, नंदनवन नामक उद्यान था। समस्त ऋतुओं में फूलने-फलने वाले पुष्पों और फलों से समृद्ध था। नंदनवन के समान रमणीय, आनंदप्रद, दर्शनीय और अतीव सुंदर था। उस उद्यान के मध्य भाग में सुरप्रिय नाम का यक्षायतन था जो दिव्य एवं वर्णन करने योग्य था। . श्रीकृष्ण वासुदेव . तत्थ णं बारवईए णयरीए कण्हे णामं वासुदेवे राया परिवसइ। से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं बलदेव-पामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं उग्गसेण-पामोक्खाणं सोलसण्हं राईसहस्साणं पजुण्णपामोक्खाणं अद्भुट्ठाणं कुमारकोडीणं संबपामोक्खाणं सट्ठीए दुइंत साहस्सीणं वीरसेण-पामोक्खाणं एक्कवीसाए वीरसाहस्सीणं महासेणपामोक्खाणं छप्पण्णाए बलवगसाहस्सीणं. रुप्पिणीपामोक्खाणं बत्तीसाए महिलासाहस्सीणं अणंगसेणा पामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं ईसरतलवर जाव सत्थवाहपभिईणं वेयहगिरि-सागर-पेरंतस्स य दाहिणट्ट भरहस्स य बारवईए णयरीए आहेवच्चं जाव पालेमाणे विहरइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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