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________________ ___ कूर्म नामक चतुर्थ अध्ययन - जागरुक कछुआ २५५ (१२) तए णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरंगए दूरगए जाणित्ता सणियं सणियं गीवं णीणेइ २ ता दिसावलोयं करेइ, करेत्ता जमग-समगं चत्तारि वि पाए णीणेइ २ ता ताए उक्किट्ठाए कुम्मगईए वीईवयमाणे २ जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं अभिसमण्णाए यावि होत्था। शब्दार्थ - जमग-समगं - एक साथ, एकाएक। भावार्थ - जब दुष्ट गीदड़ों को गए काफी देर हो गई, वे दूर चले गए, यह जानकर उस कछुए ने धीरे-धीरे अपनी गर्दन बाहर निकाली, समस्त दिशाओं का अवलोकन किया। एक साथ चारों पैर बाहर निकाले तथा अपनी उत्कृष्ट कूर्मगति से-अपनी तेज चाल से आगे बढ़ता हुआ, मृतगंगतीर झील में पहुँचा। वहां अपने मित्रों, स्वजनों, संबंधियों एवं परिजनों में मिल गया। (१३) ... एवामेव समणाउसो! जो अम्हं समणो वा समणी वा आयरिय उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइय समाणे पंच से इंदियाइं गुत्ताई भवंति जाव जहाउ से कुम्मए गुत्तिंदिए। .... भावार्थ - आयुष्मान् श्रमणो! जो साधु या साध्वी अपनी पाँचों इन्द्रियों को गुप्त रखते हैं, वे उस गुप्तेन्द्रिय कछुए की तरह अपने संयम जीवितव्य की रक्षा करते हैं। वे सर्वत्र प्रशंसित एवं समादृत होते हैं। ऐहिक एवं पारलौकिक जीवन में शांति प्राप्त करते हैं। (१४) एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते-त्तिबेमि। भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने चतुर्थ अध्ययन का यह अर्थ कहा है। जैसा मैंने उनसे श्रवण किया, वैसा ही तुम्हें बतलाया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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