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अंडक नामक तीसरा अध्ययन - उद्यान में आमोद-प्रमोद
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स्वर्ण जटित घंटियों से युक्त हो। उन बैलों को हाँकने वाला पुरुष अत्यंत निपुण हो। सेवकों ने वैसा ही किया।
(१०) ...तए णं ते सत्थवाहदारगा ण्हाया जाव अप्पमहग्घाभरणालंकिय सरीरा पवहणं दुरूहंति २ त्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता
वहणाओ पच्चोरुहंति २ ता देवदत्ताए गणियाए गिहं अणुप्पविसंति। तए णं सा देवदत्ता गणिया ते सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठा आसणाओ अब्भुढेइ २ त्ता सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ २ त्ता ते सत्थवाहदारए एवं वयासी - संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमिहा-गमणप्पओयणं। . शब्दार्थ - सत्तट्ठपयाई - सात-आठ कदम, पओयणं - प्रयोजन।
भावार्थ - उन सार्थवाह पुत्रों ने स्नान किया। वस्त्र, आभरण धारण किए। रथ पर सवार होकर वे देवदत्ता गणिका के घर के निकट आए। रथ से उतरे और घर में प्रविष्ट हुए। देवदत्ता ने जब उन्हें आते हुए देखा तो वह परितुष्ट और प्रसन्न हुई। सात, आठ कदम चलकर सामने आई और बोली - आज्ञा कीजिए, यहाँ कैसे आना हुआ?
(११) तए णं ते सत्थवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं वयासी-इच्छामो णं देवाणुप्पिए! तुम्हेहिं सद्धिं सुभूमि-भागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरित्तए। तए णं सा देवदत्ता तेसिं सत्थवाहदारगाणं एयमठें पडिसुणेइ २ त्ता बहाया कयबलिकम्मा किं ते पवर जाव सिरिसमाणवेसा जेणेव सत्थवाहदारगा तेणेव समागया। ' शब्दार्थ - सिरिसमाणवेसा - श्रीसमानवेशा-साक्षात् लक्ष्मी के तुल्यवेश युक्त।
भावार्थ - वे सार्थवाह पुत्र गणिका देवदत्ता से बोले-देवानुप्रिये! हम तुम्हारे साथ सुभूमिभाग नामक उद्यान में प्राकृतिक सुषमा का अनुभव करते हुए विहार करना चाहते हैं।' देवदत्ता ने उनके कथन को स्वीकार किया। उसने स्नान, मांगलिक कृत्य आदि किए यावत् वस्त्र, अलंकार धारण किए। उसकी वेशभूषा लक्ष्मी के समान थी। वह सार्थवाह पुत्रों के पास आई।
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