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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
२ त्ता आसियसम्मजिओवलित्तं सुगंध जाव कलियं करेह, करेत्ता अम्हे पडिवालेमाणा २ चिट्ठह जाव चिट्ठति।
शब्दार्थ - थूणामंडवं - काठ की बल्लियों के आधार पर खड़ा किया गया वस्त्राच्छादित मण्डप-शामियाना, आहणह - तैयार करो, पडिवालेमाणा - प्रतीक्षा करते हुए।
भावार्थ - देवानुप्रियो! जाओ, विपुल अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य तैयार करवाओ। तैयार कराये गये अशन-पान आदि तथा धूप-पुष्प आदि सुगंधित द्रव्यों को लेकर सुभूमिभाग उद्यान में और तद्वर्ती नंदा पुष्करिणी पर जाओ। उस पुष्करिणी से न अधिक दूर और न अधिक निकट, शामियाना लगाओ। वहाँ जल का छिड़काव कराओ, सफाई कराओ। सफाई करा कर उसे सुंदर बनाओ। वैसा कर वहाँ हमारी प्रतीक्षा करो। सेवकों ने वैसा किया और उनकी प्रतीक्षा करने लगे।
तए णं (ते) सत्थवाहदारगा दोच्चंपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेंति २ ता एवं वयासी - खिप्पामेव लहुकरण-जुत्तजोइयं समखुर-वालिहाण-समलिहियःतिक्खग्गसिंगएहिं रययामय-घंटसुत्तरज्जुयपवर-कंचण-खचिय-णत्थ-पग्गहोवग्गहिएहिं णीलुप्पल-कयामेलएहिं पवर-गोणजुवाणएहिं णाणामणि-रयणकंचणघंटियाजाल-परिक्खित्तं पवरलक्खणोववेयं जुत्तमेव पवहणं उवणेह। ते वि तहेव उवणेति।
शब्दार्थ - लहुकरण-जुत्तजोइयं - लघुकरण-युक्तयोजित-हाँकने में निपुण पुरुषों द्वारा योजित, वालिहाण - पूँछ, लिहिय - लिखित-तरासे हुए, तिक्खग्ग - आगे के तीखे भाग, णत्थ पग्गहो-वग्गहिएहिं - नाक में डाली हुई नाथ-नियंण रज्जु से बंधे हुए, आमेलएहिं - शिरोभूषणों-कलंगियों द्वारा, गोणजुवाणएहिं - युवा बैला द्वारा, पवहणं - प्रवहन-रथ (बहली)।
भावार्थ - तत्पश्चात् सार्थवाह पुत्रों ने दूसरी बार सेवकों को बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि शीघ्र ही हमारे लिए बैलों का, उत्तम लक्षण युक्त रथ तैयार करो। उस रथ में दो युवा बैल जुते हों, जिनके खुर, पूँछ एक समान हों। तरासे हुए से तीखे सींग हों। छोटी-छोटी चाँदी की घंटियों, घुघुरुओं से युक्त, स्वर्णजटित सूती रज्जु की नाथ से वे बंधे हों। उनके मस्तक पर नीलकमल की कलंगियाँ लगी हों। वह रथ ऐसा हो जो भिन्न-भिन्न प्रकार के मणि, रत्न और
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