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________________ संघाट नामक दूसरा अध्ययन - देवदत्त का अपहरण एवं हत्या २११ अपनी श्रीमंताई प्रकट करने का अहंकार भी छिपा रहता है। किन्तु वे नहीं जानते कि ऊपर से लादे हुए आभूषणों से सहज सौन्दर्य विकृत होता है और साथ ही बालक के प्राण संकट में पड़ते हैं। . कैसे-कैसे मनोरथों और कितनी-कितनी मनौतियों के पश्चात् जन्मे हुए बालक को आभूषणों की बदौलत प्राण गंवाने पड़े। आधुनिक युग में तो मनुष्य के प्राण हरण करना सामान्य-सी बात हो गई है। आभूषणों के कारण अनेकों को प्राणों से हाथ धोना पड़ता है। फिर भी आश्चर्य है कि लोगों का, विशेषतः महिलावर्ग का आभूषण-मोह छूट नहीं सका है। प्रस्तुत घटना का शास्त्र में उल्लेख होना बहुत उपदेशप्रद है। (२४) तए णं से पंथए दासचेडे तओ मुहुत्तरस्स जेणेव देवदिण्णे दारए ठविए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता देवदिण्णं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिण्णस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करेत्ता देवदिण्णस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुई वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धण्णं सत्थवाहं एवं वनासी - एवं खलु सामी! भद्दा सत्थवाही देवदिण्णं दारयं ण्हायं जाव मम हत्थंसि दलयइ। तए णं अहं देवदिण्णं दारयं कंडीए गिण्हामि जाव मग्गणगवेसणं करेमि। तं ण णजइ णं सामी! देवदिण्णे दारए केणइ हए वा अवहिए वा अवखित्ते वा पायवडिए धण्णस्स सत्थवाहस्स एयमझें णिवेदेइ। शब्दार्थ - अपासमाणे - न देखता हुआ, खुइं - छींक, पउत्तिं - प्रवृत्ति, अलभमाणेप्राप्त नहीं करता हुआ, ण-णजइ - नहीं मालूम, णीए - ले जाया गया, अवहिए - अपहतअपहरण किया गया, अवक्खित्ते - अवक्षिप्त-खड्डे आदि में डाल दिया गया, पावपडिए - पाद पतित-पैरों में गिरा हुआ। . भावार्थ - पन्थक नामक दास पुत्र कुछ देर बाद वहाँ आया, जहाँ बालक को बिठाया था। उस स्थान पर उसे बालक नहीं मिला। तब उसने रोते हुए, क्रंदन करते हुए और विलाप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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