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संघाट नामक दूसरा अध्ययन - निःसंतान भद्रा की चिंता
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जिण्णुजाणेसु य भग्गकूवएसु य मालुयाकच्छएसु य सुसाणेसु य गिरिकंदरलेण-उवट्ठाणेसु य बहुजणस्स छिद्देसु य जाव एवं च णं विहरइ। ___शब्दार्थ - आरामेसु - पुष्प, फल आदि समृद्ध वृक्षों एवं लताओं से युक्त क्रीड़ास्थानों में, दीहिया - दीर्घिका-लम्बे आकार की बावड़ी, गुंजालिया - गुंजालिका-टेढी बनी हुई बावड़ी, सुसाणेसु - श्मशानों में, लेण - पर्वत स्थित पाषाण मण्डप।
भावार्थ - वह विजय चोर राजगृह के बर्हिर्वर्ती आराम, उद्यान, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, सरोवर, जीर्ण उद्यान, टूटे हुए कुएं, मालुका कच्छ, श्मशान, पर्वत की गुफाऐं, उन पर बने हुए गृह-मण्डप, इत्यादि में अनेक लोगों के छिद्र-गुप्त वृत्तांत देखता, खोजता रहता था। निःसंतान भद्रा की चिंता
(११) तए णं तीसे भद्दाए भारियाए अण्णया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंब-जागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था - "अहं धण्णेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहूणि-वासाणि सद्द-फ़रिस-रस-गंध-रूवाणि माणुस्सगाई कामभोगाई पच्चणुभवमाणी विहरामि णो चेव णं अहं दारगं वा दारिगं वा पयायामि।
तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव सुलद्धे णं माणुस्सए जम्मजीवियफले तासिं अम्मयाणं जासिं मण्णे णियगकुच्छि-संभूयाइं थणदुद्धलुद्धयाइं महुरसमुल्लावगाइं मम्मण-पयंपियाई थणमूलकक्खदेसभागं अभिसरमाणाई मुद्धयाई थणयं पिबंति तओ य कोमल कमलोवमेहिं हत्थेहिं निहिऊणं उच्छंगे णिवेसियाई देंति समुल्लावए पिए सुमहुरे पुणो २ मंजुलप्प-भणिए। तं णं अहं अधण्णा अपुण्णा अलक्खणा अकयपुण्णा एत्तो एगमवि ण पत्ता।" . ___शब्दार्थ - कुडुंबजागरियं - कुटुम्ब विषयक चिंता में, जागरमाणीए - जागती हुई, वासाणि- वर्ष, पच्चणुभवमाणी - अनुभव करती हुई, दारगं - पुत्र, दारिगं - पुत्री, सुलद्धेसुलब्ध-सफल, लुद्धयाई - लुब्धक-इच्छुक, महुरसमुल्लावगाइं - मीठी बोली में बोलने
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