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________________ प्रथम अध्ययन - भिक्षु प्रतिमाओं की आराधना Jain Education International पूर्व के मास मिलाने से यहाँ पर २, ३, ४, ५, ६, ७ मास कहा गया है। प्रथम (आठवीं) सात अहोरात्र परिमित, दूसरी (नववीं) सात अहोरात्र परिमित, तीसरी (दसवीं) भी सात अहोरात्र परिमित, ग्यारहवीं एक अहोरात्र की एवं बारहवीं प्रतिमा एक रात्रि की परिमित है। विवेचन - महाव्रती साधक संयम पथ पर उत्साहपूर्वक बढ़ता रहे, त्याग तितिक्षा, वैराग्य, शम, संवेग आदि में वह उत्तरोत्तर ऊर्ध्वगामी बनता जाए, इसके लिए तपश्चरण मूलक साधना पथ के अनेक आयाम जैन आगमों में वर्णित हुए हैं। उनका एक ही लक्ष्य है, कि मुनि सर्वदा कर्मक्षय की दिशा में तीव्रता से प्रगतिशील रहे । भिक्षु प्रतिमाओं का विधान भी इसी प्रयोजन से किया गया है। वैसे तो एक महाव्रती साधक सभी सावद्य कार्यों का मन, वचन, काय एवं कृत, कारित, अनुमोदित रूप में वर्जन करता ही है, उसका जीवन सर्वथा संयममय होता ही है किंतु उसमें और अधिक सम्मार्जन एवं परिष्कार लाने हेतु प्रतिमा आदि विशेष रूप से सहायक होते हैं। प्रतिमा शब्द प्रतीक का भी बोधक है। भिक्षु प्रतिमाओं में निरूपित क्रम एक विशेष साधना का प्रतीक होता है। दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि एक विशेष साधना उसमें प्रतिबिम्बित होती है। प्रतिमा का एक अन्य अर्थ " मानदण्ड " भी है। जहाँ साधक किसी एक विशिष्ट अनुष्ठान के उत्कृष्ट परिपालन में संलग्न होता है, वहाँ उस अनुष्ठान का सम्यक् अनुसरण उसका मुख्य ध्येय हो जाता है। उसका परिपालन एक " मानदण्ड" का रूप ले लेता है। इसका अभिप्राय यह हैं कि वह साधक अपनी साधना द्वारा एक ऐसी स्थिति का निर्माण करता है, जिसे अन्य लोग त्याग प्रधान आचार का मानदण्ड स्वीकार करते हैं। समवायांग एवं भगवती सूत्र में बारह प्रतिमाओं का उल्लेख है । दशाश्रुतस्कंध सूत्र में बारह भिक्षु प्रतिमाओं का विस्तृत विवेचन है। आत्म-निष्ठा, अनासक्ति, त्याग वैराग्य आदि की दृष्टि से वह अत्यंत प्रेरणाप्रद हैं। प्रतिमाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है । पहली भिक्षु प्रतिमा का समय एक मास है । उसको जो साधु स्वीकार करता है, वह शरीर की परिचर्या एवं ममत्व का त्याग कर विचरण करता है । उपसर्ग उत्पन्न होने पर वह देह की समवायांग सूत्र, समवाय- १२/१ * भगवती सूत्र शतक २३०१ पृ० ५८-६१। दशा श्रुतस्कन्ध सातवीं दशा पृ० ५० से ६१ । १७३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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